पत्रकारिता के संरक्षण के लिए सर्वोच्च न्यायमूर्ति चंद्र चूड़ व हिमा कोहली अभिनंदनीय-गणेश ज्ञानार्थी

जीटी-70017 राम प्रकाश शर्मा ब्यूरोचीफ औरैया।
6 अप्रैल 2023
#औरैया।
सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार गणेश ज्ञानार्थी ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति डीवाई चंद्र चूड़ व न्यायमूर्ति हिमा कोहली द्वारा मलयालम चैनल पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को समाप्त करने के फैसले पर पत्रकारिता के संरक्षण के लिए आभार व्यक्त करते हुए इसे लोकतंत्र की हिफाजत की दिशा में ऐतिहासिक निर्णय बताया है और कहा है, कि प्रेस की स्वतंत्रता पर आघात लगाने वाली कोशिशों पर सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर प्रहार करके राजनीति को आइना दिखाया है, जिसका स्वागत किया जाना जनहित में सर्वदा हितकारी रहा है। न्यायमूर्तियों का यह निर्णय पत्रकारों के आत्मबल में वृद्धि कारक एवं अभिनंदनीय है। स्तंभकार ज्ञानार्थी ने पत्रकारिता को कर्तव्य पथ पर लोकतंत्र के लिए सजग रहने की दिशा में न्यायमूर्तियों की टिप्पणियां वास्तव में दिशा दायक हैं, जिनका ध्यान रखा जाना स्वस्थ लोकतंत्र के निर्माण में आवश्यक है। पत्रकारों को चाहिए की वे निर्भय रह कर सरकारी नीतियों की आलोचना से सरकारों को आइना दिखा कर जन हित के लिए प्रेरित करते रहें।
ज्ञातव्य है कि सूचना एवं गृह मंत्रालय द्वारा मलयालम चैनल वन के नवीनीकरण को न करने को प्रेस की स्वतंत्रता पर आघात मानते हुए सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने अनुचित मानते हुए इस पर लगे प्रतिबंध हो हटाने का निर्णय सुनाया है और कहा है कि प्रेस का कर्तव्य है कि वह सत्ता के सामने सच लाए, नागरिकों के सामने कठोर तथ्य पेश करे ताकि जनता को उचित विकल्प मिले और स्वस्थ लोकतंत्र अस्तित्व में रहे। ज्ञानार्थी ने न्यायालय के निर्णय अंशों को उद्धृत करते हुए लिखा,”सरकार प्रेस पर अनुचित प्रतिबंध नहीं लगा सकती।ऐसा करना प्रेस की आजादी को प्रतिबंधित करना होगा।मजबूत लोकतंत्र के लिए प्रेस की आजादी बेहद ज़रूरी है, जो कि मजबूत लोकतंत्र के लिए अत्यावश्यक है।प्रेस का कर्तव्य देश के सामने सच बोलना है। सरकारी नीतियों की आलोचना को सत्ता विरोधी नहीं माना जा सकता,इससे राष्ट्र को कोई खतरा नहीं होता। प्रेस को प्रसारित अपनी विज्ञप्ति में ज्ञानार्थी का यह भी कहना है कि आलोचनाओं से घबरा कर जब जब भी किसी सरकार ने लोकतंत्र की आत्मा सरीखी पत्रकारिता को दुश्मन की नज़र से देखने की गलती की है, हर बार सत्ता दल को भारी नुकसान हुआ है। सरकार हो या विपक्ष दोनों को पत्रकारिता के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करनी चाहिए, ताकि उन्हें अपनी भूलों को सुधारने का अवसर मिलता रह सके। जिससे उनकी लोकप्रियता में वृद्धि भी संभव है। प्रेस जनता की आवाज़ है, जिसे हल्ला बोल, आदि रास्तों से कुचलने की कोशिश करने वालों को केवल अलोकप्रिय ही होना पड़ता है।”निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय” का संदेश देने वाले तपस्वी ऋषियों को भुला कर, एवं पत्रकारों को नुकसान पहुंचा कर राजनीति, प्रशासन कभी भी जन हित कारी नही बन सकता, न ही लोकप्रिय हो सकता है। लोकतंत्र की आत्मा रूपी पत्रकारिता के पवित्र सेवा धर्म से जुड़े महारथियों को भी चाहिए कि वे पक्षपाती, अनर्गल, अविश्वसनीय और समाज देश विरोधी लेखन को हतोत्साहित कर ऐसे लोगो को पत्रकारिता को बदनाम करने का अवसर प्रदान न करें, ऐसी गन्दी मछलियों को तालाब से बाहर करने में हिचक न दिखाएं।