द्वापर युग में स्थापित भारेश्वव वर नाथ के दर्शन करने भत्तों की उमड़ी भारी भीड़

इसी स्थान के निकट है यमुना,चम्बल का संगम
विशेष, आस्था, विशेषांक
ग्लोबल टाइम्स 7 डिजिटल न्यूज नेट वर्क,लेखनी , बृजेश बाथम की कलम से।
उत्तर प्रदेश के अजीतमल जनपद औरैया से 17 किलोमीटर दूरी पर दक्षिण दिशा की ओर स्थित भारेश्वर धाम मंदिर में भग्तों की आस्था दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।महाशिवरात्रि, और सावन के सोमवार को लाखों भग्तगण यहां पूजा अर्चना के लिए आते है ऐसा कहा जाता है कि भागेश्ववर नाथ के दर्शन मात्र से ही भग्तो की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।444 फिट ऊंचाई पर बने इस मंदिर पर जाने के लिए 108 सीढियां है।इसी मंदिर के निकट यमुना और चम्बल नदी का संगम है और कुछ दूरी पर पचनद है जहां पांच नदियों का संगम है जो भारत में इकलौता पांच नदियों का संगम है। मंदिर के पुजारी का कहना है कि द्वापर युग में अज्ञातवास के समय भगवान श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन,नकुल ,सहदेव ने यहां तपस्या की थी और उनकी तपस्या से खुश होकर भोले नाथ यहां प्रकट हुए और भीम ने शिवलिंग की यही स्थापना की।तभी से इस स्थान को भारेश्ववर धाम के नाम से जाना जाता है। उस समय भरेह के राजा कुंदल मल थे उन्होंने पांडवों की तपस्या और पूजा अर्चना में पूर्ण सहयोग और मदद की थी।पुजारी का कहना है कि गोस्वामी तुलसीदास भी एक बार जब इस मंदिर के निकट से गुजर कर जब पचनद पर पहुंचे और नीर पीने के लिए आवाज लगाई तो मंदिर पर रहने वाले पूज्य गुरुदेव ने तुलसीदास को इसी मंदिर पर बुलाकर श्रद्धा भाव से जल पिलाया था।
पुजारी का कहना है कि मनोकामना पूर्ण होने के बाद भग्त गण इसी मंदिर पर भागवत कथा और भंडारे की व्यवस्था करते है जिसका प्रसाद पाने के लिए दूर दूर से साधुओं,संतों और भत्तों की भारी भीड़ जमा होती है।आस्था और विश्वास का प्रतीक द्वापर युगीन भारेश्ववर धाम मंदिर दर्शनीय तीर्थ स्थल है जहां दर्शन मात्र से ही भत्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
जय हो भारेश्ववर् धाम की,हर हर महादेव।