गोंडा जेल की वह बैरक, जहां आज भी जीवित है शहीद राजेंद्र नाथ लाहिड़ी का बलिदान

Gonda
काकोरी कांड के अमर सेनानी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को वर्ष 1927 में गोंडा कारागार की जिस तन्हाई भरी बैरक में रखा गया था, वह आज भी उनके अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान की मूक साक्षी बनी हुई है। आज़ादी के बाद से उस बैरक में किसी कैदी को नहीं रखा गया। जेल प्रशासन द्वारा प्रतिदिन वहां सफाई कर दीप प्रज्वलित किया जाता है और श्रद्धासुमन अर्पित किए जाते हैं। जेल अधिकारियों का कहना है कि अमर सेनानी को स्मरण कर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने जेल अधिकारियों के समक्ष “वंदेमातरम” का उद्घोष करते हुए कहा था— *“मेरा विश्वास है कि मैं मरने नहीं, बल्कि भारतवर्ष को पूर्ण स्वतंत्रता दिलाने का स्वप्न पूरा करने के लिए पुनः जन्म लेने जा रहा हूं।”* उनकी निर्भीकता से ब्रिटिश हुकूमत तक भयभीत थी। काकोरी कांड के अन्य क्रांतिकारियों को 19 दिसंबर को फांसी दी जानी थी, लेकिन अंग्रेजों को आशंका थी कि क्रांतिकारी उन्हें जेल से छुड़ा सकते हैं। इसी भय से राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को दो दिन पहले ही गुपचुप तरीके से फांसी दे दी गई।
रंगकर्मी देवव्रत सिंह का कहना है कि शहीदों के सपनों को जीवित रखने के लिए जिला मुख्यालय में एक संग्रहालय बनाया जाना चाहिए, जिससे युवा पीढ़ी को अमर सेनानियों के जीवन और बलिदान की प्रेरणा मिल सके। वहीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिषद के राजेश श्रीवास्तव ने गोंडा जिला जेल का नाम राजेंद्र नाथ लाहिड़ी के नाम पर रखने और स्कूलों में उनकी स्मृतियों को सहेजने की मांग की है।
विरासत में मिला देशप्रेम
राजेंद्र नाथ लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को बंगाल के पावना जिले के मोहनपुर गांव में हुआ था। उनके पिता क्षितिज मोहन लाहिड़ी और भाई जितेंद्र लाहिड़ी बंगभंग आंदोलन में शामिल रहे, जिसके कारण उन्हें सजा भी भुगतनी पड़ी। उस समय राजेंद्र की उम्र मात्र नौ वर्ष थी। बाद में वह काशी पहुंचे और सेंट्रल हिंदू स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। काशी में ही उनकी मुलाकात प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचींद्र नाथ सान्याल से हुई, जिन्होंने उन्हें नवगठित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का बनारस प्रभारी बनाया।
काकोरी कांड: सरकारी खजाने की ऐतिहासिक लूट
क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से शाहजहांपुर में बैठक हुई और लखनऊ ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को काकोरी के पास लूटने का निर्णय लिया गया। नौ अगस्त 1925 की शाम काकोरी के पास सरकारी खजाना लूटा गया। इसके बाद अंग्रेजों ने 23 क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया। राजेंद्र नाथ लाहिड़ी पुलिस को चकमा देकर कलकत्ता चले गए, लेकिन दक्षिणेश्वर में बम बनाते समय गिरफ्तार कर लिए गए। बाद में उन्हें काकोरी कांड की सुनवाई के लिए लखनऊ लाया गया और छह दिसंबर 1927 को विशेष न्यायाधीश हेमिल्टन ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई।
फांसी के दिन तड़के साढ़े तीन बजे उन्हें जगाया गया। नित्यक्रिया के बाद उन्होंने व्यायाम किया और गीता का पाठ किया। जब वजन किया गया तो वह पांच पौंड अधिक निकला। इसके बाद फांसी के तख्ते पर खड़े होकर उन्होंने “भारत माता की जय” और “वंदेमातरम” के गगनभेदी नारे लगाए। जेल के पीछे छिपे स्वतंत्रता सेनानियों ने भी वंदेमातरम का उद्घोष किया। अंततः राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने निर्भीकता से फांसी के फंदे को चूमकर मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
आज भी गोंडा जेल की वह बैरक देश को यह याद दिलाती है कि स्वतंत्रता यूं ही नहीं मिली, बल्कि अनगिनत वीरों के रक्त और बलिदान से मिली है।






