उत्तर प्रदेश

“नेता जी” ! गांवों में अपना बोट बैंक मजबूत करने के लिये,आप पहले किसे अहमियत व प्राथमिकता देंगे “प्रधान” या “पंचायत वार्ड सदस्य” !

:- जनपद में ग्राम प्रधान 590, तो ग्राम पंचायत वार्ड सदस्य 7446 !

:- गांव सभा में पंचायत वार्ड सदस्य को जीत का ठप्पा मिलने के बाद कैसी होती दशा,जबकि पार्टी प्रत्याशियों की भी नजरों से रहते सदा उपेक्षित

:- प्रधान व सचिवों द्वारा ग्राम पंचायतों में भी नही दी मिलती उन्हें अहमियत एवं प्राथमिकता,ग्राम सभा स्तर सरकारी प्रतिभागों के लाभों से भी पांच वर्ष रहते बेचारे वंचित !

आलोक मिश्रा
ग्लोबल टाईम्स 7
न्यूज नेटवर्ट
कानपुर / लखनऊ ।
पंचायती राज अधिनियम व शासन व्यवस्था के तहत गांवों की तीसरी सरकार में अभिन्न अंग कहे जाने वाले “ग्राम पंचायत वार्ड सदस्य” की भी गांवों में एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है ‌‌। उदाहरण तौर जैसे नगरीय क्षेत्र के वार्डों में होने वाले चुनावों में नगर निगमों से पार्षद,नगर पालिकाओं व नगर पंचायतों से सभासदों का चुनावोंपरांत असम्बेली की बैठकों व कार्यो में शामिल होना व उनकी सहमति लेना जैसा अहम रोल होता है । ठीक उसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों के ग्राम पंचायतों के गांवों व मजरे में भी वार्ड होते हैं,जहां गांवों के वार्डों से ग्राम पंचायत सदस्यों का चुनाव गांव की जनता द्वारा होता है,और ग्राम पंचायतों में वार्ड सदस्यों के पूरा होने के समर्थन तदोपरांत गांव के ग्राम प्रधान को गांव की जनता के बीच विकाश खंड व जिला स्तर अधिकारी की उपस्थिति में शपथ दिलवाकर वार्ड सदस्यों की सहमति पर सम्पूर्ण कार्यकाल दौरान वर्ष अंतर्गत गांवों में कार्य कराये जाने की अनुमति प्रदान की जाती है, जहां पर सरकार द्वारा गांव की तीसरी सरकार कहे जाने वाली पार्लियामेंट की बैठकें आयोजित कराये जाने हेतु ग्राम प्रधान,सचिव की भूमिका व पंचायत वार्ड सदस्यों की उपस्थिति में पंचायत सचिवालयों को भी खुलवाये जा चुके हैं‌। जिनसे गांव की जनता के कार्य व समस्यायें सुचारु रूप ढंग व आसानी से सम्पन्न हो सके। लेकिन जनाब धरातलीय नजारों की असिलियतें ठीक विपरीत अर्थात जमीनी हकीकतें तो
कुछ और ही बयां करती हुई हमेशा देखी जा रही हैं । जहां ग्रामीण क्षेत्रों की ग्राम पंचायतों के पार्लियामेंट की बैंठकों में पंचायत वार्ड सदस्यों को अधिकांशत: दूर ही रखा जाता है, कभी कबार सोते जागते बैठकें हो गई तो ठीक बाकि सब कागजों पर चलता है की कहावतें चरितार्थ हो रही है‌ तो कहीं प्रधान व पंचायत सचिव अपना कागजी कोरम पूरा करने में भरपूर लगे हुये हैं। जो अपने विभागीय अफसरों को तरह तरह की रिपोर्टे पेश करके वाहवाहियां लूटते रहते है। और सरकार का ग्राम पंचायतों के प्रति विकाश कार्यों हेतु खर्च होने वाला लाखो करोडों रूपी बजट पूरी तरह हजम होकर सिर्फ कागजों पर विकाश होता रहता है ‌। तो वहीं राजनीतिक दलों के पार्टी प्रत्याशियों का भी गांवों के बोट बैंक के ठेकेदार रूपी प्रधानों तक ही सम्पर्क सीमित रहता है‌ । जिसके चलते गांवों के पंचायत वार्ड सदस्य भी पार्टी प्रत्याशियों की नजरों से हमेशा उपेक्षित ही रहत हैं। अब देखना यह होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों द्वारा भी गांवों के पंचायत वार्ड सदस्य कुछ चहेते बन पायेंगें याफिर बोट बैक के ठेकेदार रूपी के ग्राम प्रधान ही सदैव चहेते रहेंगे ।

एक नजर में जनपद के ग्राम प्रधान व पंचायत वार्ड सदस्यों की संख्या

अब बात करते हैं नगर जनपद के ग्राम प्रधानों व पंचायत वार्ड सदस्यों की तो यहां कुल ग्राम पंचायतों की संख्या 590 है । ‌जिनमें महिला प्रधान संख्या 195 व पुरूष प्रधानों संख्या 395 और वहीं पंचायत वार्ड सदस्यों की सख्या 7446 है ‌।

पंचायत वार्ड सदस्यों का दुखडा व उपेक्षाओं का शिकार

यदि बात की जाय बेचारे पंचायत वार्ड सदस्यों की तो वह दोहरी मार के बीच फिसते हुये नजर आते रहते है। मीडिया को जानकारी देते हुये एक पंचायत वार्ड सदस्य ने बताया कि हम लोग वार्ड सदस्य का पद जीतने के बाद कहीं का नही यह पाते है, यहां तक कि परिवार का सगा सम्वंधी भी ग्राम पंचायत स्तर की किसी भी सरकारी प्रतिभाग में हिस्सा तक नही ले पाते, कारण पंचायत वार्ड सदस्य होने के लिये नियम विरूद्ध हो जाता है । दूसरे गांव के प्रधान व सचिव हम लोगों को गांव की किसी भी कार्य योजनाओं से सम्वंधित अहम बैठकों व कार्यों से सम्बंधित सहमिति तक लिया जाना मुनासिब नहीं समझा जाता , यहा तक गांवों के प्रधानो द्वारा सही व गलत कार्य अपने चहेते के माध्यम से खुलेआम कार्य कराये जाते हैं ‌। जिन पर कोई हतस्क्षेप तक नही करने वाला होता, जिसके चलते सरकार के लाखो व कडोरो सचिव व प्रधान मिलकर हजम करते रहते‌। विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशी भी विभिन्न गांवों के प्रधानो तक ही सीमित रहते हैं क्योकि वह अपने आप में गांव की जनता के बोट बैंक के रूप ठेकेदार होते हैं।

Global Times 7

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