शिव तांडव स्त्रोत का छंद में भवानुवाद किया

हरदोई जनपद के पंकज त्रिपाठी का प्रयास
प्रवाहमान जान्हवी, जटाटवी विशाल से
- शिव तांडव स्त्रोत का छंद में भवानुवाद किया
- हरदोई जनपद के पंकज त्रिपाठी का प्रयास
29 दिसंबर
अवध दीक्षित मुख्य न्यूज एडीटर gt-7
कानपुर परिक्षेत्र (कानपुर)। कहते हैं प्रतिभा छुपाए नहीं छुपती ऐसे ही हरदोई जनपद की शाहाबाद तहसील के निवासी पंकज त्रिपाठी ने रावण कृत शिव तांडव स्त्रोत जटाटवी गलज्वल प्रवाह पावितस्थले, गलेवलंब-लंबिताम, भुजंग तुंग मालिकाम का पद्य में भावानुवाद किया है। वर्तमान में उनका यह स्रोत काफी चर्चित और लोकप्रिय हो रहा है।
पंकज त्रिपाठी से जब शिव तांडव स्रोत को छंद में लिपिबद्ध करने के संबंध में वार्ता हुई। तो उन्होंने बताया कि वह मूलरूप से जनपद हरदोई के शाहाबाद तहसील क्षेत्र के निवासी और परिषदीय विद्यालय में शिक्षक हैं। बताया कि उनको लेखन का शौक वर्ष 2019 से पैदा हुआ और तब से वह रचनाएं लिख रहे हैं।
बताया कि उनको हिंदी के अलावा संस्कृत और अंग्रेजी में भी रूचि है। जबकि पौराणिक ज्ञान अर्जित करने के लिए वह बचपन से ही लगाव रखते हैं।
बताया कि इसी कड़ी में उन्होंने अबतक कई रचनाएं की हैं। इनमें छंद आधारित गीत एवं गीतिका तथा गजल समेत करीब 300 रचनाएं सृजित कर चुके हैं। बताया इनमें प्रमुख रूप से शिव तांडव स्त्रोत, नमामि गंगे, सीता स्वयंवर, पुष्प वाटिका, उर्वशी, सात वचन और मां आदि मुख्य हैं।
बताया कि पद्य और छंद लेखन की प्रेरणा उनको अपने माता पिता और परिवार से ही मिली। बताया कि अभी तक उनका कोई गुरु नहीं है।
शिव तांडव स्रोत लिखने की प्रेरणा के पीछे उन्होंने बताया की इसमें उनका अपना कोई श्रेय नहीं है। बल्कि, ईश्वर की प्रेरणा छिपी हुई है। बताया कि वाह कुछ अन्य पौराणिक विषयों पर भी छंद एवं गीत लिखने का प्रयास कर रहे है।
फोटो- रावण कृत शिव तांडव स्त्रोत छंद में लिखने वाले पंकज त्रिपाठी।
…शिव तांडव स्तोत्र का भावानुवाद
प्रवाहमान जान्हवी जटाटवी विशाल से।
करे पवित्र ब्याल को शिरोधरा कृपाल के।
निनाद वाद्य यंत्र का प्रचंड वेग नृत्य है।
प्रधान तीन लोक में विधान पंचकृत्य है।१
प्रचंड वेग घूमती जटा कड़ाह आग में।
तरंगिनी अधीर सी ललाट उच्च भाग में।
कृशानु भाल चंद्रमा विराजमान शीश हैं।
अथाह सिंधु भक्ति का समस्त लोक ईश हैं।२।
गिरा किरीट दीप्ति का दसों दिशा प्रकाश जो।
शिवा हृदै सरोज का उदीय सा प्रभास वो।
विपत्तियां अनंत का निदान एक दृष्टि से।
रहूँ सदैव सिक्त सा दयानिधान वृष्टि से।३।
मणिप्रभा भुजंग की निवास जो करें जटा। बिखेरती दिशानने ललाम लेप की छटा।
मतंग चर्म वस्त्र में विभोर स्निग्ध गात हैं।
प्रमोद चित्त भक्ति श्री अघोर भूतनाथ हैं।४।
विभिन्न देव शीश में सुगंध पुष्प जो सजे।
प्रणाम इंद्र आदि से प्रसून पादुका लगे।
बँधी जटा कपालु की सशक्त नागराज से।
प्रभो स्वभक्ति भक्त को करो प्रदान आज से।५।
ललाट वेदिका जली प्रचंड अग्नि ताप से।
जला दिया मनोज को नमन्यइंद्र आप ने।
किरीट चंद्रमा विराट भाल व्याप्त बुद्धि हे।
करे विभूति द्रव्य में तथा विवेक शुद्धि दे।६।
ज्वलंत भाल अग्नि से अनंग को निपात के।
उकेर चित्र दिव्य भाँगपत्र गौरि गात में।
अनन्य चित्रकार हे अनंत शक्तिमान हे।
त्रिनेत्र आशुतोष हे असीम भक्ति दान दे।७।
नवीन मेघ माल से घिरी हुई यथा अमा।
स्वरूप रंग हो रहा शिवाय कंठ का तमा।
गजेंद्र चर्म चेल हे! प्रबंध विश्व भार हो।
मनोज्ञ इंदु कांति ईश! संपदा प्रसार दो।८।
प्रफुल्ल नील कंज सी मरीचि कंठ कंध में।
स्वतंत्र राह मुक्ति की समस्त लोक बंध में।
विनाश कामदेव दक्षयज्ञ अंध बाण के।
अनादि! अंत से परे अनंत भक्त त्राण हे।९।
अमर्त्य! योगक्षेम के प्रवास का प्रसंग हो।
गिरा कला कमोद की रसानुभूति भृंग हो।
गयंद अंध बाण दक्षयज्ञ काम अंत हो।
कृतांत के कृतांत जो नमामि गौरि कंत को।१०।
ललाट तीव्र घूमते कराल की फुँकार से।
प्रचंड अग्नि हो रही समीप गंगधार के।
मृदंग मंद मंद गूढ़ नाद नृत्य रुद्र है।
भजामि व्योमकेश जो दया कृपा समुद्र है।११।
शिला कठोर या पलंग माल सर्प मौक्ति का।
प्रभाव शत्रु मित्र रत्न और अंश मृत्तिका।
प्रजा नरेश पद्य या त्रणः समान दृष्टि में।
प्रणाम एकलिंग को प्रधान सर्व सृष्टि में।१२।
कछार गंग में निवास शीर्ष हाथ जोड़ के।
विभोर सिक्त चक्षु से सभी प्रपंच छोड़ के।
शिवाय मंत्र जाप का कभी अरण्यनाद हो।
महेश भक्ति में सुखानुभूति ही प्रसाद हो।१३।
सुगंधि पुष्प शीश अप्सरा गुँथे पराग से।
सहस्र के समान मंजु अंग चक्षुराग के।
प्रमोद हर्ष हो सदैव दर्श वामदेव से।
प्रसन्न चित्त ध्यान से विजेतृ कामदेव के।१४।
जलेशअग्नि सी प्रचंड पाप भस्म श्रृंखला।
अखंड अष्टसिद्धि नारिरूप नेत्र चंचला।
प्रभो विवाह में सुरांगना उचार मंत्र जो।
वही समस्त लोक का विकार मुक्ति तंत्र हो।१५।
पुनीत रुद्र वंदना करे प्रवीन नित्य जो।
विशुद्ध हो विचार सर्जना नवीन क्रित्य हो।
उमेश ध्यान मात्र ही विरुद्धशक्ति नाश है।
विनम्र भक्ति शंभु की समग्र शक्ति वास है।१६।
पूजावसान क्षण में, शिव स्त्रोत गायें।
कल्याण वृष्टि शुभ से, हर भक्ति पाएँ।
आशीष शंकर मिले, रथ अश्व हाथी।
विस्तार कीर्ति यश हो,धन धान्य साथी।१७।