उत्तर प्रदेशलखनऊ

जन्म भूमि विवाद पर अधिवक्ताओं की राय


गोपाल चतुर्वेदी
ग्लोबल टाईम्स 7 न्यूज
मथुरा
श्री कृष्ण जन्म भूमि- शाही ईदगाह मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता श्री मधुवन दत्त चतुर्वेदी द्वारा बहुत सटीक जानकारी दी उन्होंने कहा कि
जन्मस्थान-ईदगाह विवाद पर
ईदगाह कमेटी के अध्यक्ष डॉक्टर ज़हीर हसन ने ‘बैठकर बात कर लेने’ की जो बात की है उसे किसी किस्म के ‘नए समझौते’ की पेशकश के तौर पर देखा जा रहा है । सवाल ये है कि 1968 का समझौता रद्द करते ही जो परिस्थिति उतपन्न होगी वह क्या होगी ? जैसे ही 1968 का समझौता रद्द होता है , उसके आधार पर तय हुए सब मुकदमे फिर से जीवित हो जाएंगे । समझौते से पूर्व की स्थिति बहाल करनी होगी जिसमें वर्तमान भव्य मंदिर अस्तित्व में नहीं था और आज की कृष्ण जन्म भूमि के बड़े हिस्से पर घोषियों और दूसरे लोगों की आबादी बसी हुई थी क्या वह बस्ती फिर आबाद की जाएगी ? कहा जाता है कि 1814 में राजा पटनीमल ने भूमि ईस्ट इंडिया कम्पनी से ली थी लेकिन इस सवाल का जबाब भी फिर से पूछा जाएगा कि क्या ईस्ट इंडिया कम्पनी उस जमीन की मालिक थी जो उसे बेचने का हक था ! ईस्ट इंडिया कम्पनी साल 1857 के ग़दर तक ‘राज्य सत्ता’ की परिभाषा में ही नहीं थी और न किसी सत्ता के जायज अधिकार की प्रतिनिधि थी । बातचीत से हल हो चुका है । फिर से बातचीत की बात बिना किसी ठोस प्रस्ताव के छेड़ दी गयी है जिसपर उत्साहित साम्प्रदायिक शक्तियों के प्रस्ताव आने लगे है कि दूसरी जगह जमीन दे देंगे आदि आदि । मैं डॉक्टर हसन साहब के इस बयान से हैरत में हूँ ! खैर , नए समझौते की शोशेबाजी 1991 के पूजा स्थल कानून और सहअस्तित्व की भावना के विरुद्ध है । यह साम्प्रदायिक विद्वेष की शक्तियों के समक्ष समर्पण की बात है या फिर राजकीय कृपा की किसी आकांक्षा से जन्मा हुआ बयान है ।

Global Times 7

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