बड़ा दिल दिखाते हुए मुलायम सिंह ने कांशीराम को संसद पहुंचाया

ग्लोबल टाइम्स-7, डिजिटल न्यूज़ नेटवर्क, जिला संवाददाता राम प्रकाश शर्मा औरैया।
औरैया। मुलायम सिंह ने कांशीराम को ऐसा मुकाम हासिल कराया जिसकी उन्हे अपने राजनीतिक जीवन में लंबे अरसे से तलाश थी। कांशीराम देश की राजनीति में काफी लंबे अरसे से सक्रिय थे, लेकिन कई बार चुनाव लड़ने के बावजूद उनका संसद पहुंचने का सपना पूरा नही हो पा रहा था। जिनका सपना धरतीपुत्र मुलायम सिंह जी ने बड़ा दिल दिखाकर इटावा की धरती से चुनाव लड़ा कर पूरा किया। ग्राम पंचायत जैतापुर निवासी सेवानिवृत्त प्रवक्ता सेवाराम यादव की जुबानी धरती पुत्र की कहानी।
सन् 1991 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह का अपने प्रति विशेष स्नेह देखते हुए बसपा संस्थापक कांशीराम ने इटावा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और इस चुनाव की पहली जनसभा जसवन्तनगर के तमैरी गांव में संपन्न हुई थी। जैसे ही आम जनता को मुलायम और कांशीराम की जोड़ी दिखाई दी वैसे ही भीड़ से नारा निकला, ” मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़़ गए जय श्रीराम”.यह वो समय था जब राम मंदिर का मुद्दा बेहद गर्म था। अपने धुर राजनैतिक विरोधी होने के बावजूद भी मुलायम सिंह ने कांशीराम को इटावा से पहली बार सांसद का चुनाव जितवाकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचा दिया। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मुलायम सिंह ने कांशीराम के ठहरने, जनसभाओ की व्यवस्था और चुनावी प्रबंधन का अपनी जिम्मेदारी समझकर विशेष ख्याल रखा। कांशीराम उस समय इटावा के जिस अनुपम होटल में ठहरे थे, एक बार हमें भी वहां सन् 2000 के आस-पास जाने का मौका मिला था, तब होटल के मालिक ने किसी प्रसंगवश उस चुनाव की चर्चा की और नेताजी के दरियादिली के बारे में बताया कि उस चुनाव के प्रचार के दौरान होटल के सभी 28 कमरों को मुलायम सिंह ने कांशीराम जी के लिए बुक करा दिया था। कमरा नंबर 6 में कांशीराम रुके थे, और कमरा नंबर 7 में उनका सामान रखा था। इसी होटल में कांशीराम ने अपना चुनावी कार्यालय भी बना रखा था। होटल के मालिक ने बताया वह जमाना लैंड लाइन फोन का था और नेताजी का रोज फोन आता कि कांशीराम जी को कोई दिक्कत नही होनी चाहिए वो हमारे मेहमान है। मुलायम सिंह ने कांशीराम जी कमरे में होटल मालिक से कहकर एक लैंड लाइन उनके कमरें में भी लगवा दिया था। जिस पर वे दोनो लोग चुनाव संबंधी लंबी बातचीत करते थे। मुलायम सिंह ने पूरे चुनाव के दौरान इटावा में कई जनसभाएं और रोड़ शो कांशीराम जी के समर्थन के लिए किया. अपने कार्यकर्ताओं को विशेष जिम्मेदारी सौंपकर उसका समय समय पर फीड बैक लेते रहे, जिसका परिणाम रहा कि कांशीराम जी 1991 में देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचने में सफल रहे। ऐसे थे हमारे नेताजी। लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं रहे। पूरे भारतवर्ष में उनके निधन पर शोक की लहर दौड़ गई है। वहीं दूसरी ओर श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा हुआ है। नेताजी अपने कृतित्व व व्यक्तित्व से हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गये हैं। धरतीपुत्र कहलाने वाले नेताजी को आज हम सब अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।