पांडिचेरी विश्वविद्यालय में डॉ0 गोविन्द कुमार द्विवेदी के व्याख्यान की सराहना

जीटी 7 डिजिटल न्यूज़ नेटवर्क टीम औरैया, प्रदेश हेड संपादक डॉक्टर धर्मेंद्र गुप्ता। 10 जुलाई 2025
औरैया, पांडिचेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग तत्वावधान में भाषा प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय कार्यशाला कार्यक्रम के अंतर्गत विगत 09 जुलाई 2025 को सायं 6 बजे ” हिंदी की विकास यात्रा में तत्सम -तद्भव -देशज -विदेशज -संकर शब्दावली का महत्त्व ” विषय पर संस्कृत महाविद्यालय औरैया के हिंदी प्राध्यापक डॉ0 गोविन्द कुमार का व्याख्यान प्रारंभ हुआ करीब एक घंटे तक चले इस व्याख्यान में डॉ0 द्विवेदी ने कहा “भाषाई विकास की गति झरने की तरह होती है, जिस तरह झरना ऊपर से नीचे गिरता है उसी तरह भाषा के विकास की पहली शर्त उसकी सरलता व सहजता है। जो भाषाएं इस मानक पर खरी नहीं उतरीं वे स्वमेव मृत हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि भाषा का भावनाओं और विचारों के आदान प्रदान का माध्यम है ; वह युग चेतना की अभिव्यक्ति का साधन है, यदि भाषा में इतनी जटिलता आ जाए कि वर्ग विशेष ही उसे समझ सके तो उसकी उपयोगिता ही संदिग्ध हो जाती है। हिंदी की विकसन शीलता व व्यापकता निरंतर सरलता के सिद्धांत पर ही निर्भर है कि हिंदी संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश से होती हुई भी 11वीं शताब्दी में अपने मूल रूप तक पहुंचती है। आज देश के 10 प्रदेशों में मुख्य भाषा के रूप से बोली जाती है। शेष प्रदेशों में भी समझी जाती है। . देश के लगभग 70 फीसद से अधिक लोग गर्व से इसका प्रयोग करते हैं । फिजी, सूरीनाम समेत कई देशों में का बोलबाला है। विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में वह तीसरे स्थान पर है। वह बाजार की भाषा है, प्रमुख आंदोलनों की भाषा है,देश की सांस्कृतिक पहचान की भाषा है और पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण तक भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाली भाषा है। चूंकि हिंदी ने संस्कृत की तत्सम शब्दावली जैसे मस्तक, हस्त आदि को समाहित करते हुए तद्भव शब्दावली जैसे माथा, हाथ आदि को भी आत्मसात किया। देशज शब्दावली जिनकी व्युत्पत्ति व्याकरण सम्मत नहीं है बौड़म, छीछालेदर आदि। डॉ0 पूरनसिंह डाभास के अनुसार इन शब्दों की संख्या 1167 है को भी आत्मसात किया इसी तरह विभिन्न संस्कृतियों के संपर्क में आने के कारण विदेशज शब्द जिनकी से संख्या लगभग 6000 है को यत्किंचित् सुधार के साथ जैसे हॉस्पिटल से अस्पताल नजदीक से नगीच आदि या ज्यों का त्यों जैसे बुक पेन आदि स्वीकार कर लिया। इसी तरह संकर या मिश्रित अर्थात जो शब्द दो भाषाओं के शब्दों के मेल से बनते हैं जैसे टिकिट घर ,लाठी चार्ज आदि ।निश्चित रूप से इस तरह की सरल शब्दावली से हिंदी ने आम जनता में अपनी पकड़ मजबूत की है।”पटल पर उपस्थित सभी विद्वानों ने डॉ0 द्विवेदी के व्याख्यान की मुक्त कंठ से सराहना की कार्यक्रम के संयोजक विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ0 सी जयशंकर बाबू एवं सह संयोजक उमेश प्रजापति ‘अलख रहे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ0 सी जयशंकर बाबू करेंगे। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 स्मिता श्रीवास्तव एम टी अंतर्राष्ट्रीय स्कूल दिल्ली ने किया कार्यक्रम में अन्य वक्ता के रूप में डॉ0 विनोदराम जाधव सदस्य महाराष्ट्र लोक साहित्य समिति, महाराष्ट्र शासन डॉ0 अनुपमा प्रवक्ता हिंदी दिल्ली शिक्षा विभाग, सैंड्रा ल्युटवन सूरीनाम,डॉ0 अंशुल दुबे तिलक महाविद्यालय औरैया , डॉ0 सरिता चौहान मैहर महाराज महिला महाविद्यालय चंडीगढ़ समेत करीब सौ विद्वान उपस्थित रहे। व्याख्यान के उपरांत प्रश्न सत्र हुआ और में डॉ0 सी जयशंकर बाबू के अध्यक्षीय उद्बोधन के साथ कार्यक्रम समापन की घोषणा हुई अंत में धन्यवाद प्रस्ताव किया गया। हिंदी प्रेमी पांडिचेरी विश्वविद्यालय की वेबसाइड पर इसे लाइव देख सकते हैं। ये व्याख्यान विश्वविद्यालय के यूट्यूब पर रिकॉर्डेड भी रहेगा। बता दें कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत की भाषाई समस्याओं का निराकरण करना तथा हिंदी लोकप्रियता बढ़ाना है।