भाजपा को इंडिया, कांग्रेस को भारत भाता था !

बिशेष—-
भाजपा को इंडिया, कांग्रेस को भारत भाता था !
ग्लोबल टाइम्स-7
007
न्यूज नेटवर्क
अनूप गौङ
जिला संवाददाता
कानपुर देहात
भारत और इंडिया की बहस में जनता भी उलझ गई है। इस बहस को पैदा करने वाली भाजपा और कांग्रेस का दोहरा चरित्र बता रहा है कि जनहित, राष्ट्रहित, समाजहित की भावना हो ना हो पर जनता को उलझाना राजनीति की सबसे बड़ी जादूगरी होती है।
देश के नामों को लेकर भाजपा-कांग्रेस और अन्य दल विशुद्ध राजनीति कर रहे हैं, ये समझने के लिए पीछे जाइए –
कांग्रेस का स्वर्णकाल था। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी सबसे चर्चित किताब का शीर्षक दिया था- “भारत एक खोज”। इस पुस्तक का अंग्रेजी नाम है- डिस्कवरी ऑफ इंडिया।
थोड़ा सा पीछे जाइए तो कांग्रेस ने अपने दुर्दिनों से उबरने की कोशिश में सबसे महत्वाकांक्षी,जमीनी और उम्मीद से भरी जिस कम्पेन की सफलता से ऊर्जा हासिल की उस कम्पेन का नाम रखा था- “भारत जोड़ो यात्रा”।
यानी अतीत और वर्तमान में कांग्रेस भी भारत को सबसे प्रचलित नाम मानती रही। पंडित नेहरू से लेकर राहुल गांधी देश का सर्वमान्य नाम भारत मानते रहे। नेहरू की पुस्तक भारत एक खोज से लेकर राहुल की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता बताती है कि भारत नाम कांग्रेसियों के लिए शुभ भी है और सर्वमान्य भी है। इंडिया गंठबंधन के घटक दल समाजवादी पार्टी के संस्थापक स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव भी चाहते थे कि देश को केवल भारत के नाम से जाना जाए।
तो फिर यदि मोदी सरकार भारत को प्रचलन में ला रही है तो इसपर कांग्रेस और अन्य भाजपा विरोधी दल इतना हंगामा क्यों खड़ा कर रहे हैं। यदि देश का नाम भारत है और इसका अंग्रेजी नाम इंडिया है, राष्ट्र भाषा हिन्दी में नाम भारत को सर्वमान्य, सर्वश्रेष्ठ और उपयुक्त मानकर इसका प्रचलन बढ़ाने की कवायद शुरू की जा रही है तो इसमें समस्या क्या है ?
अब भाजपा के दोहरे चरित्र वाली राजनीति पर गौर कीजिए। सरकार के नये नवेले इस शगूफे का पोस्टमार्टम करें तो ये राजनीतिक स्टंट ही नजर आएगा।
देश को सिर्फ भारत के नाम से जाना जाना चाहिए। भाजपा को इन विचारों का सपना कब आया ? इसका जवाब मुश्किल नहीं है। विपक्षी दलों ने भाजपा के विरुद्ध लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए जो गठबंधन तैयार किया उसका शॉटफार्म है- I.N.D.I.A यानी इंडिया। जब से विरोधियों ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा तब से भाजपा को इंडिया नाम से एलर्जी होने लगी। कभी इंडिया को आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन से जोड़ा तो कभी ईष्ट इंडिया कंपनी से इंडिया की तुलना कर दी।
नहीं तो इंडिया गंठबंधन से पहले भाजपा को देश का इंडिया नाम स्वीकार भी था और बहुत प्रिय भी था। इस इंडिया नाम को एनडीए की मोदी सरकार ने प्रचलन में लाने में खूब गति दी।
केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले नौ वर्षो में इंडिया नाम को स्वीकार भी किया, प्रचलित किया और खूब प्रमोट भी किया। इंडिया नाम से सरकार की योजनाओं पर खरबों रुपए जनहित में खर्च किए। अरबों रुपयों का प्रचार किया। दोबारा केंद्र की सत्ता में आने में इन योजनाओं का भी श्रेय रहा।
सरकार की अधिकांश योजनाएं इंडिया नाम पर आधारित रहीं। मसलन -खेलो इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया, इंवेस्ट इंडिया, फेम इंडिया, फिट इंडिया इत्यादि-इत्यादि। तो फिर अब एकाएक इंडिया नाम में कांटे क्यों लग गए ? इस नाम से एलर्जी क्यों होने लगी ? शायद इसीलिए कि विरोधियों ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रख लिया। कहीं ऐसा ना हो कि इस नाम से विपक्षियों को चुनावी लाभ मिल जाए, उनके गठबंधन का नाम इंडिया उनकी कम्पेन को राष्ट्रवाद की धारा से ना जोड़ दे। इस समस्या के समाधान के लिए कुछ तो करना ही था। जनता के सरोकारों को भुलाकर इंडिया बनाम भारत में राजनीति की दुकानें चलाई जाना मुनासिब समझा गया। ये चर्चा आम जनमानस में लाकर देश के दो नामों के अखाड़े खोद दिए गए।
लोकसभा चुनाव से सात-आठ महीने पहले जब सत्ताधारियों को जनता के सामने अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करने का वक्त था, विपक्ष के सवालों के जवाब देने थे, तब चर्चाओं का रुख पलट जाए। मंहगाई, बेरोजगारी, गरीबी और मेहनतकशों, मजदूरों, किसानों की समस्याओं के बजाय कभी कॉमन सिविल कोर्ट कभी एक राष्ट्र एक चुनाव के शगूफे में तो कभी भारत और इंडिया की चर्चा में जनता उलझी रहे।
संसद के विशेष सत्र में देश को इकलौता भारत नाम दिए जाने पर मोहर लगेगी ! इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाएगा ! ऐसा कुछ होगा, हो पाएगा या नहीं ? ये समय बताएगा। लेकिन भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए की मोदी सरकार ने इंडिया को साइड कर भारत को प्रचलन में लाना शुरू कर दिया है।
दूसरे तरफ इस बदलाव को देखकर विपक्षी तिलमिला गए हैं। कांग्रेस और देश के अन्य विपक्षी दलों की एकजुटता वाले इंडिया गंठबंधन का हर दल केंद्र सरकार के इस फैसले और इरादे से आगबबूला है। लोकसभा चुनाव से पहले ये मुद्दा राजनीतिक का केंद्र बन गया है।
देश के टॉप टू राजनीति दल भाजपा और कांग्रेस से राजनीति क्या ना करवा दे, कुछ नहीं कहा जा सकता। गुजरे पिछले नौ साल में कांग्रेस का राजनीतिक रसूख गिरा और जनाधार कमजोर हुआ। पार्टी ने अपना पुराना वजूद पाने के लिए जितने भी जतन किए विफल हुए। किंतु बीते वर्ष ने कांग्रेस को आशा की किरण दिखाई दी। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ी। कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ा। हिमाचल और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस का ग्राफ बढ़ा तो देश के अन्य भाजपा विरोधी दलों ने कांग्रेस के साथ एकजुट होकर इंडिया गंठबंधन का गठन किया। बड़ी बात ये रही कि भाजपा से लड़ने के लिए आम आदमी पार्टी जैसे कांग्रेस के धुर विरोधी दल भी कांग्रेस के करीब आ गए।
इन सफलताओं के पीछे कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को सबसे बड़ा श्रेय जाता है। राहुल गांधी की इस यात्रा ने ना सिर्फ उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता बढ़ाई बल्कि कांग्रेस को आक्सीजन दिया। भारत जोड़ो यात्रा में देश मोहब्बत के सूत्र में बंधा या नहीं बंधा ये अलग बात है लेकिन भाजपा को हराने के मकसद से देश के विपक्षी दलों ने इस यात्रा के बाद जुड़ना शुरू कर दिया।
कांग्रेस खुद भारत को देश के जनमानस का प्रचलित नाम मानकर अपनी यात्रा का नाम भारत जोड़ो यात्रा रखे तो ठीक और भाजपा की केंद्र सरकार भारत नाम को प्रचलित करे तो एतराज ?
देश के नाम के नाम पर राजनीति की तालियां दोनों हाथों से बज रही हैं।
लेकिन इस पालिटिकल उठापटक के बीच सरकार भारत नाम का प्रचलन बढ़ाए, इंडिया नाम का इस्तेमाल ना करे तो यहां तक तो चल जाएगा लेकिन यदि कयास सच साबित होते हैं और संसद के विशेष सत्र में संविधान में संशोधन कर इंडिया का नाम मिटाया जाता है तो ये भाजपा के लिए घातक हो सकता है। देश की बड़ी आबादी वाला दलित समाज बिल्कुल भी नहीं चाहता कि बाबा साहब डाक्टर भीमराव अम्बेडकर के संविधान में जरा भी छेड़खानी की जाए। भले ही राजनीतिक रसूख में इन दिनों हाशिए पर हों पर विशाल दलित समाज की सबसे बड़ी नेत्री कही जाने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने संविधान से छेड़छाड़ ना करने की चेतावनी भी दी हैं।