उत्तर प्रदेशलखनऊ

प्रधान मन्त्री आवास योजना की कलई के दावों की पोल खोल रहा है जनपद कानपुर देहात

जहाँ लोग घास फूश की झोपड़ी बना कर जीवन यापन को मजबूर

प़शासन की पहुंच से दूर

ग्लोबल टाइम्स-7
डिजिटल
न्यूज नेटवर्क
अनूप गौङ
जिला प़शासनिक संवाददाता
कानपुर देहात

जनपद कानपुर देहात जहाँ अपनी योजनाओं को लेकर अपनी प़संशा मे लगा है वही गरीब घास फूस के घरौदे बना कर अपना जीवन यापन करने को मजबूर हो रहा है
जहाँ लोग सरकार की योजना के लिए पात्र भी है
कानपुर देहात का रुरा नगर पंचायत के वार्ड नo दो कानपुर देहात – प्रधान मन्त्री के निर्देशन मे निर्बलो को चलाई जा रही प्रधान मंत्री आवास देने की महत्वाकांक्षी योजना को मूर्त रूप देने मे लगे उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ के द्वारा करोडो रुपये खर्च कर के नगरी एवम ग्राम सभा के भूमि पर भूमंजिली इमारतों का निर्माण एवम आवंटन किया जा रहा है किन्तु प्रदेश मे सबसे पिछड़े जिले कानपुर देहात के निवासी आज भी इस योजना का लाभ पाने को भटक रहे हैं जिसका जागता उदाहरण कानपुर देहात जनपद रूरा नगर पंचायत है जहाँ के निवाशी आज भी दादा परदाओं के द्वारा अर्जित की गई जमीनों पर घास फ़ूश की मडइया डाल कर एवम कच्ची मिट्टी के घरौंदे बनाकर उसमे रहने और जीवन यापन करने को मजबूर है जिनकी सुध कानपुर देहात के जिला प्रशासन या शासन मे बैठे अधिकारियों के द्वारा अभी तक नहीं ली है जबकि कानपुर। देहात जनपद मे तीन सांसदों तीन मंत्रियों सहित चार विधायक हैं उत्तर प्रदेश शासन के राज्य मंत्री श्री मती प्रतिभा शुक्ला के निर्वाचन क्षेत्रों्र के अंतर्गत आने वाली नगर पंचायत रूरा के राकेश नाथ पुत्र बैजनाथ, रमेश नाथ, अवधेश नाथ पुत्र सुबेदार, पारश्नाथ, मिथुन नाथ बीरेंद्र नाथ, तपेशवरी नाथ पुत्र सुबेदार नाथ , गिरीश नाथ पुत्र नौरङ्ग नाथ आदि ने बताया की विधायक सांसद एवम नगर पंचायत के चुनाव के माहौल के दौरान हमारी और हमारे वार्ड की लोगों को हमारी बस्ती की याद की जाती है किन्तु इसके बाद गर्मी बरसात और जाड़ों की रातें हम किस प्रकार अपने बाप दादा परदादा की बनाई गयी इन कच्ची दीवालो और घास फूंस के बने इन झोपडो मे गुजारते हैं ये इस गाव के 95 फीसदी नियती बन गयी है और ये झोपड़े हमारी पहचान बन गये हैं यह स्थित कानपुर देहात के 95 फीसदी उन रूरा की है जहाँ प्रदेश सरकार द्वारा भारतीय स्वच्छता अभियान मलिंन बस्ती उद्धार मनरेगा जैसी योजनाएं संचालित हैं फिर भी लोग मजबूरी की जिन्दगी जीने को मजबूर है

Global Times 7

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