उत्तर प्रदेशलखनऊ

पितरों की विदाई और नौ देवियों की अगवानी !

शारदीय नवरात्र शुरू-

_ घाटमपुर कस्बे में है देवी के चतुर्थ स्वरूप का मंदिर
25 सितंबर
अवध दीक्षित मुख्य न्यूज एडीटर जीटी_7
कानपुर परिक्षेत्र (कानपुर)। शारदीय नवरात्र का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार देवी का शक्ति के स्वरूप में पूजन किया जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने शक्ति का वरदान पाकर विजयदशमी के दिन लंका में रावण का वध किया था।


देवी पुराण और शास्त्रों में वर्णित नव दुर्गा के स्वरूपों में एक “चौथे स्वरूप कुष्मांडा” देवी का मंदिर कानपुर जनपद के घाटमपुर कस्बे में स्थित है। जहां पर
मां कुष्मांडा लेटी हुईं मुद्रा में हैं। पिंड स्वरूप में लेटी मां कुष्मांडा से लगातार पानी रिसता है। मान्यता है कि इस पानी को पीने से कई तरह के रोग दूर हो जाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब मां कुष्मांडा ने अपनी हंसी से ब्रह्मांड की रचना की थी। यही कारण है कि इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति माना जाता है। नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है।
कानपुर शहर से 40 किलोमीटर दक्षिण की ओर कानपुर-सागर राजमार्ग पर स्थित घाटमपुर कस्बे में मां कुष्मांडा देवी का करीब 1000 वर्ष पुराना मंदिर है।
मंदिर के गर्भगृह में मां कुष्मांडा एक पिंडी के स्वरूप में लेटी अवस्था में हैं। जिससे लगातर पानी रिसता रहता है। ऐसी मान्यता है कि ये पानी ग्रहण करने से विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है। वहीं नेत्र रोगों के लिए ये अति उत्तम बताया गया है। पिंडी के समीप से ये पानी कहां से रिसता है इस रहस्य का पता कोई आज तक नहीं लगा पाया है।
मंदिर में कोई पंडित नहीं, बल्कि माली विरादरी के लोग पूजा-अर्चना करते व कराते हैं। मन्नत पूर्ण होने पर यहां भीगे चने मां को अर्पित किए जाते हैं।
मंदिर को लेकर एक किवदंती भी प्रचलित है। कहा जाता है कि यहां पहले घना जंगल था। घाटमपुर नगर को बसाने वाले राजा घाटमदेव के चरवाहे का नाम कुड़हा था। वह राजा की गाय चराने जाया करता था। लेकिन शाम को जब वह दूध निकालने जाता तो गाय एक बूंद दूध नहीं देती। इससे वह परेशान होने लगा। एक रात मां ने ग्वाले को स्वप्न में दर्शन दिए। दूसरे दिन जब वह गाय लेकर जा रहा था तो अचानक गाय के आंचल से दूध की धारा निकल पड़ी। उसी स्थान पर माता की पिंडी निकली।
गाय के इस चमत्कार की चर्चा जैसे ही राजा के कानों तक पहुंची तो वह उसी स्थान पर पहुंचे और देवी मूर्ति का नाम चरवाहे कुड़हा के नाम पर रखने की घोषणा की। जिसके चलते मां कुष्मांडा का एक नाम कुड़हा देवी भी है। स्थानीय लोग मां को इसी नाम से पुकारते हैं। वर्तमान मंदिर का निर्माण 1890 में कसबे के चंदीदीन भुर्जी ने कराया था।
मंदिर के समीप ही दो तालाब बने हैं। भक्त एक तालाब में स्नान करने के पश्चात दूसरे कुंड से जल लेकर माता को अर्पित करते हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन और स्थानीय प्रशासन की उदासीनता के चलते अब इन तालाबों में एक तालाब में ही पानी रहता है। जबकि दूसरा तालाब सुखा हुआ पड़ा है। शारदीय और बसंत नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर माता कूष्मांडा देवी के मंदिर परिसर में भव्य दीपदान महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमें हजारों की संख्या में झिलमिल कर जलते दिए मनोरम दृश्य पैदा करते हैं। यह आयोजन काफी सुंदर होता है।
फोटो- माता कुष्मांडा देवी की पिंडी मंदिर और मुख्य द्वार

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