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जनवादी क्रन्तिकारी कवि अदम गोंडवी का सफर !

जो डलहौज़ी ना कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे ,
कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे,
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एक छोटा सा परिचय!
रामनाथ सिंह अदम गोंडवी यह ना यह वह नाम है ,जो दुष्यंत कुमार नागार्जुन धूमिल की परंपरा कवियों में शुमार है, उनकी रचना में आम आदमी खासकर दलित शोषित वंचित उत्पीड़ित व्यक्तियों की व्यथा है, और वो उनकी आवाज बने उन्होंने आजादी के 30 साल बाद देश के शासकों को से यह सवाल पूछा की ,सौ में सत्तर आदमी फिलहाल नाशाद है ,दिल पर रख के हाथ कहिए देश क्या आजाद है !


वह जनता का आवाहन करते थे ,, उस पर फिर लिखा छेड़िए एक जंग मिलजुल के गरीबी के खिलाफ ,, दोस्त और मजहबी नगमात को मत छेड़िए ! आगे अदम गोंडवी लिखते हैं ! जब सियासत हो गई है पूंजी पतियों की रखैल आम जनता को बगावत का खुला अधिकार है!
उन्होंने जन समस्याओं को जमीन से उठा कर मंच तक पहुचाया ,, अदम की शायरी का राजनीति से गहरा वास्ता है,, वह राजनीति और राजनेताओं को आईना दिखाते हुए कहते हैं !कि, काजू भुने पलेट में विस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास में !


आदम की तीन रचनाएं गर्म रोटी की महक समय से मुठभेड़ धरती की सतह पर इन सभी की वैचारिक भूमि एक ही है ! अदम उन कवियों में से थे जो शायरी भी जो एक मकसद की तरह लेते थे जो समाज में हो रहे वह उन्हें अपनी रचनाओं के माध्यम से उठाते थे !

अदम जी मृतोपरांत सफर अनवरत आगे बढ़ाते हुए अदम दिलीप गोंडवी NCR दिल्ली


अदम गोंडवी की रचनाओं की भाषा जनता के बीच की है ,, सहज है, वह जनता के बीच में जनता की बात रखते थे वह खड़ी बोली के लोक कवि थे,, एक नजर अदम पर गोण्डा जिले के एक छोटे से गांव आटा पूरे गजराज सिंह 22 अक्टूबर 1947 को एक साधारण किसान परिवार में रामनाथ सिंह (अदम) का जन्म हुआ पारिवारिक पृष्ठभूमि कमजोर होने के कारण केवल प्राइमरी तक की शिक्षा पाने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी बचपन से ही कविता पाठ की और उनका झुकाव था वह आस-पास के मुशायरा व कवियों सम्मेलनों में जाने लगे उन्होंने तीन रचनाएं लिखी वर्ष 2011 में 18 दिसंबर को उनका निधन हो गया उन्हें 1998 में दुष्यंत पुरस्कार नोएडा से नागरिक सम्मान माटी रत्न पुरस्कार मिला 19 दिसंबर को अदम गोंडवी पदम विभूषण पुरस्कार देने की तत्कालीन डीएम राम बहादुर की संस्तुति फाइलों में दबी हुई है!

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कुछ नई रचना दिलीप गोंडवी द्वारा

दिल के सूरज को, सलीबों पे चढ़ाने वालो!
रात ढल जाएगी, इक रोज जमाने वालो!

मैं तो खुशबू हूँ, किसी फूल में बस जाऊँगा!
तुम कहाँ जाओगे काँटों के बिछाने वालो !

मैं उसूलों के उजालों में रहा करता हूँ!
सोच लो मेरी तरफ लौट के आने वालो !

उँगलियाँ तुमपे उठाएगी ये दुनिया इक दिन!

अपने बेदिल से नजर फेर के जाने वालो !

जहाँ पर भाईयों में प्यार का सागर नहीं होता,
वो ईंटों का मकाँ होता है , लेकिन घर नहीं होता ,

जो अपने देश पर कटने का जज्बा ही न रखता हो ,
वो चाहे कुछ भी हो सकता है , लेकिन सर नहीं,

जो समझौते की बातें हैं , खुले दिल से ही होती है,
जो हम मिलते हैं उनसे, हाथ में खंजर नहीं होता है,

हकीकत और होती है, नजर कुछ और आता है,

जहाँ पर फूल खिलते हैं, वहाँ पत्थर नहीं होता है,

जो एक सीमा मे रहकर रोशनी देता है ‘बोदिल’ को,
वो जुगनू हो तो हो, लेकिन कभी दिनकर नहीं होता !

एक कदम चलते है, और चल के ठहर जाते हैं,
हम तो अब वक़्त की आहट से भी डर जाते हैं!

जो भी इस आग के दरिया में उतर जाते हैं,
वही तपते हुए सोने -से निखर जाते हैं!

भीड़ के साथ चले हैं, वो उधर जाते हैं!
हम तो खुद राह बनाते हैं, इधर जाते हैं,

मेरी कश्ती का खिवैया है, मुहाफिज तू हैं,
कितने आते हैं यहाँ, कितने भँवर जाते हैं !

जब भी आते हैं मेरी आँख में आँसू ‘बेदिल’

जख्म सीने के मेरे, और निखर जाते हैं!

सत्ताधारी लड़ पड़े हैं आज कुत्तों की तरह,
सूखी रोटी देखकर हम मुफलिसों के हाथ में!

जो मिटा पाया न अब तक भूख के अवसाद को ,
दफ़्न कर दो आज उस मफलूस पूँजीवाद को !


दिलीप गोंडवी
खतरनाक कवि एंव साहित्यकार
निवास स्थान – आटा पूरे गजराज सिंह, परसपुर जिला – गोण्डा , उत्तर प्रदेश -271504/
9958253708
dilipgondvi@gmail.com

दिलीप कुमार सिंह, दिलीप गोंडवी, नई दिल्ली-15-9-2022/

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