हाल ए जनसुनवाई : बिल्हौर में बिना किसी कार्यवाही के शिकायतें निस्तारित

पीड़ित अपने खेत की पैमाईश मेड़बंदी कराने के लिए एक वर्ष से लगा रहा कार्यालय के चक्कर
राजस्व संहिता की धारा 24 के अन्तर्गत एक वर्ष पूर्व नियमानुसार किया था आवेदन
ग्लोबल टाइम्स 7
न्यूज़ नेटवर्क
कसीम ख़ान
बिल्हौर:
उत्तर प्रदेश सरकार का जनसुनवाई पोर्टल जिम्मेदारों की उदासीनता से मजाक बन कर रह गया है, क्योंकि पोर्टल पर तो मामलों का निस्तारण दिखाकर अधिकारी शासन से अपनी पीठ थपथपा लेते हैं, लेकिन पीड़ित की समस्या जस की तस रहती है। चाहे शासकीय उपक्रम की सार्वजनिक संपत्तियों पर हुए अवैध कब्जों का मामला हो अथवा जानबूझकर वर्षों से ज़मीन पैमाईश को लंबित किए जाने की शिकायत हो, सभी का हाल एक जैसा है। ऐसे मामलों में शिकायत दर शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं हो रही है।
समस्याओं के समयबद्ध और समुचित समाधान के लिए माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा बनाए गए जनसुनवाई पोर्टल अफसरों की आंकड़ेबाजी के कारण मजाक बनता नजर आ रहा है। सरकार की मंशा थी कि पोर्टल के जरिए लोगों की भागदौड़ बचेगी साथ ही उन्हें अपने क्षेत्र में ही अपनी शिकायतों का आसानी से निदान मिल जाएगा। परन्तु तहसील प्रशासन की उदासीनता, सुविधा शुल्क के अभाव में मातहत दफ्तर में बैठ कर ही समस्याओं का निस्तारण दिखा कर फाइल बन्द कर देते हैं और आला अफसर स्थलीय सत्यापन में रुचि नहीं दिखाते हैं। नतीजतन, शिकायतकर्ता या पीड़ित आदमी वर्षों से तहसील कार्यालय के चक्कर लगाने को मजबूर है। इसी कड़ी में बिल्हौर नगरपालिका क्षेत्र निवासी एक किसान ने आबादी से सटे हुए अपने खेत गाटा संख्या 2166/2 की पैमाईश मेड़बंदी कराने हेतु राजस्व संहिता धारा 24 के अन्तर्गत उपजिलाधिकारी कार्यालय में दिनांक 7 सितम्बर 2021 को नियमानुसार आवेदन किया था। शासन द्वारा तय समय सीमा बीत जाने के बाद भी जमीन पैमाईश मेडबंदी न होने से और सुविधा शुल्क की मांग से त्रस्त होकर विवादों से बचने के लिए जनसुनवाई पोर्टल पर दिनांक 18-06-2022 को शिकायत संख्या 40016422029601 एवं दिनांक 16-08-2022 को शिकायत संख्या 40016422040644 दर्ज की थी। जिस पर राजस्व निरीक्षक राधेलाल कार्य क्षेत्र पूरा द्वारा बिना किसी सूचना, स्थलीय निरीक्षण के कार्यालय बैठे बैठे मनमानी रिपोर्ट आईजीआरएस पर लगाकर शिकायत निस्तारित कर दी। आख्या रिपोर्ट में बताया गया कि बारिश का मौसम चल रहा है और फसल बुवाई जा चुकी है। जबकि मौके पर पहुंची हमारी टीम को आसपास के सभी खेत सुखे व खाली दिखें। वहीं बताया गया कि फसल कट जाने पर नियमानुसार फाईल का निस्तारण कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि फाईल दस माह से लंबित है और अभी तक प्रारम्भिक रिपोर्ट तक नहीं लगी जो कि जांच का विषय है। साथ ही आख्या में यह भी बताया गया कि शिकायतकर्ता को मौके पर सुना गया। जबकि इस सम्बन्ध में शिकायतकर्ता को कोई जानकारी ही नहीं। यह तो सिर्फ बानगी है जांच अधिकारी राधेलाल द्वारा बिना पैमाइश अथवा बिना किसी पूछताछ व शिकायत कर्ता से सम्पर्क के मनमाने ढंग से शिकायतों को निस्तारित कर दिया गया। स्पष्ट है कि पोर्टल पर दर्ज होने वाली शिकायतों का फर्जी निस्तारण किया जा रहा है। इसे लेकर शिकायतकर्ता परेशान हैं और अफसर शासन को शत-प्रतिशत निस्तारण की रिपोर्ट भेजकर मौज काट रहे हैं।
———— जानबूझकर लंबित किए जाते हैं वाद —————–
बिल्हौर तहसील में भूमि पैमाइश कराना आसान नहीं है। जब कोई किसान अपने खेत का सीमांकन कराना चाहता है, तो वह एसडीएम कोर्ट में भू-राजस्व संहिता की धारा 24 के तहत हदबरारी का दावा करता है। पीड़ित पक्ष से एक हजार रुपये ट्रेजरी में जमा कराए जाते हैं। इसके बाद भी पैमाइश के लिए सालों लग जाते हैं। पैमाइश कराने के लिए लेखपाल और कानूनगो से कहते रहिए, मगर वह सीधे मुंह बात नहीं करते हैं वह सुविधा शुल्क की तलाश में आज और कल आने की बात कहते रहते हैं। मगर सुविधा शुल्क मिलते ही प्यार की भाषा बोलने लगते हैं। वहीं सुविधा शुल्क के अभाव में नाप करने के लिए मामलों लटकाए रखा जाता है और पीड़ित को दौड़ाते रहते हैं। जिसके चलते समय से नापी न होने से काश्तकारों में विवाद बढ़ जाता है जो खूनी संघर्ष में तब्दील हो जाता है।
————————— सरकार के भ्रस्टाचार के खिलाफ लड़ाई की धज्जियां उड़ा रहे सरकार के मातहत ——————————
यह तहसील प्रशासन की भ्रष्ट कार्यप्रणाली का नमूना है। जहां बिना रिश्वत के जूं तक नही रेंगती है। बेपरवाह व रिश्वतखोर कर्मचारी सरकार की कार्यप्रणाली पर पलीता लगा रहे हैं। चूंकि थोड़ी सी खोजबीन करने पर ज्ञात हुआ कि जांच अधिकारी राधेलाल का कार्य क्षेत्र पूरा है और शिकायत क्षेत्र बिल्हौर नगरपालिका जिसके राजस्व निरीक्षक व लेखपाल विजय कुमार है वहीं निस्तारित आख्या में न ही शिकायतकर्ता एवं गवाह के हस्ताक्षर हैं। स्पष्ट है कि जब शिकायतकर्ता से संपर्क ही नहीं किया गया तो हस्ताक्षर कौन करेगा।
———————निष्कर्ष —————-
एक तरफ सरकार भ्रस्टाचार के खिलाफ सख्त है तो दूसरी तरफ उनके ही मातहत भष्ट्राचार कर मस्त दिखाई दे रहे हैं। अब लूट कहिये या खुली छूट कहिये, लेकिन रिश्वतखोर कर्मचारियों को न सूबे के मुखिया का डर है और न जिले के कलेक्टर साहब का।