उत्तर प्रदेशलखनऊ

सतगुरु से ज्ञान प्राप्त करके सहज जीवन जीना ही भक्ति__ महात्मा रामचंद्र शास्त्री

ग्लोबल टाइम्स-7
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न्यूज नेटवर्क
अनूप गौङ
जिला संवाददाता
कानपुर देहात भोगनीपुर

भोगनीपुर तहसील के चांदापुर गांव में आयोजित प्रेरणा दिवस के अवसर पर निरंकारी मिशन के महात्मा रामचंद्र शास्त्री ने कहा कि सतगुरु से ज्ञान प्राप्त करके सहज जीवन जीना भक्ति है । ज्ञान बिना भक्ति और भक्त बिना जीवन का कल्याण नहीं है ।ज्ञान परम पावन है इसके समान पवित्र और उद्धार करने वाला कुछ अन्य नहीं है ।जो ज्ञानी है विज्ञानी है वही भक्त है। परमात्मा के निर्गुण निराकार स्वरूप के प्रभाव एवं महत्व की जानकारी का नाम ज्ञान है ।सगुण साकार रूप की लीला रहस्य महत्व प्रभाव आदि का ज्ञान ही विज्ञान है । महात्मा रामचंद्र शास्त्री ने कहा कि यह विश्व निराकार ब्रह्म की समग्र रूप का एक शुद्ध अंश मात्र है। जिस तरह पेड़ को जान लेना जड़ तने पत्तियां डालियों फल फूल इतिहास को जान लेना है इसी तरह ज्ञान द्वारा तश्रुप रूप में सामग्र को जो जान लेता है। उसके लिए संसार में कुछ और जानना शेष नहीं रहता ।बिरला ही सतगुरु की कृपा से इस निराकार ब्रह्म के रहस्य को जान पाता है उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत गीता के अनुसार इस जीवात्मा पर ब्रह्म का ही अंश है जैसे वायु गंध ग्रहण कर लेती है वैसे ही जीवात्मा पिछले शरीर से ग्रहण करके दूसरे शरीर में ले जाती है शरीर के नाश होने पर यह आत्मा नाश नहीं होती यह आत्मा पुराने त्याग कर नए वस्त्र ग्रहण करने की भांति नया शरीर ग्रहण कर लेती है ।आत्मा को आग नहीं जला सकती जल गिला नहीं कर सकती संपूर्ण जगत परमात्मा से जल से बर्फ के सद्शय पर पूर्ण है परमात्मा माया से स्थित अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम है ।यह आत्मा अजन्मा शाश्वत वह पुरातन है उन्होंने कहा कि ब्रह्म ज्ञान का उपदेश करने वाला पिता के समान होता है परमेश्वर के ज्ञान द्वारा ही विषयों में लगी इंद्रिय जीती जा सकती हैं मन जीत लेने से इंद्रिय वह पांचो कमेंदिनियां जीत ली जाती है ब्रह्म से भिन्न जो आत्मा है वह आनंद में नहीं हो सकती आत्मा में भी ईश्वर के समान गुण है निरंकारी सतगुरु इस आत्मा को परमात्मा से मिलान करने की सिखलाई दे रहे हैं ।यह आत्मा जब परमात्मा का जो अंश है इसमें जब समझ आती है तो परमानंद प्राप्त हो जाता है हमेशा हमेशा का जीवन मरण का चक्कर समाप्त होट जाता है गुरसुखों को निंदा से बचे रहना सतगुरु की शिक्षा को अपने स्वयं को निमाड़ा व अनजान समझे दूसरों को ऑश्रेष्ठ व महान तभी भक्ति सफल हो पाती है। सेवा सिमरन सत्संग में कमाई तो कर लेता है परंतु निंदा नफरत में फंसकर उसको गाव देना भक्ति से वंचित हो जाता है । महात्मा चेतन दास पूर्ण भगत थे उन्होंने अपना पूरा जीवन भक्ति में ही व्यतीत किया इस अवसर पर संजय चक प्रमोद कुमार आशुतोष कुमार विनोद संतोष गुप्ता बेबी गुड्डन सावित्री वंदना आदि महात्मा उपस्थित थे।

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