ठाकुर पंचम सिंह के स्मृतियों के साथ हो रहा बड़ा खेल !

मिटाया जा रहा इतिहास हाजी वारिस अली शाह दरगाह देवा बाराबंकी!
ग्लोबल टाइम्स 7 न्यूज नेटवर्क
लखनऊ उत्तर प्रदेश!
बाराबंकी देवा शरीफ
आपको बताते चलें यह संदेश देवा शरीफ बाराबंकी जो 19 वीं सदी के परम् संत महान ज्ञानी , परम् तपस्वी प्रेम के दूत हाजी वारिस अली शाह का है,, जो रब है,, वही राम है,, जो हममें है,, वही तुम में है,, ईश्वर एक है , वह हर जगह विराजमान अंतर्मुख होकर पहचानों !

इनका (ऐहराम) एक तरह का अंग वस्त्र जो की किसी बिशेष धर्म से प्रेरित न होकर पीला था आज भी आपको हाजी वारिस अली शाह के अनुयायी पीला वस्त्र धारण कर खड़ाऊ पहने हुए कहीं ना कहीं अक्सर मिल जाएंगे !
जैसा की आप सभी जानते हैं, भारत देव भूमि संतो की धरती है, इस धरा ने एक से तपस्वी संन्यासीयों को जन्म दिया जो आज पूरे विश्व में भारत विश्व गुरु के रूप जाना जाता है।
आज हम बात कर रहे हैं,, एक ऐसे महात्मा हाजी वारिस अली शाह की जो की ऐसे तपस्वी संत थे कहते हैं,, बाबा एक बार अगर मुर्दों को आदेश दे देते थे तो वह उठकर खड़ा हो जाता था इतनी दिव्व्यता थी की जो एक बार दर्शन कर लेता था मुरीद हो जाता था वह सब कुछ बाबा की सेवा समर्पित कर देता था!
हाजी वारिस अली शाह वैसे तो वह मुस्लिम थे लेकिन ब्रम्ह ज्ञान के उपासक थे वह एक अच्छे साधक थे ,, उनका कहना था जो रब है, वही राम है,, वह किसी एक धर्म को न मानकर समस्त मानवजाति के कल्याण में विश्वास रखते थे ,,वो हमेशा मानव प्रेम सौहार्द मानवता की बात करते थे मानवीय भावना से ओतप्रोत थे !

इसी में एक कड़ी आती है,, इटावा ठाकुर राजा पंचम सिंह की कहानी जिन्होंने एक बार बाबा को बुलवाया और कहा अगर श्रीकृष्ण जी के दर्शन करवा दें तो मान जाएं बाबा ने कहा आँख बंद करिए जब आँख खोला तो कृष्ण जी के दर्शन किए राजा पंचम सिंह ने अपना अभिमान त्याग कर बाबा सरण ले ली अपनी सारी रियासत हाजी वारिस अली शाह को वक्फ कर दी और गुरूमुख हो गए उनके बताए मार्ग पर चलने लगे हाजी वारिस अली शाह ने प्रेम से पंचम सिंह को वकार शाह के नाम से बुलाते थे उनके सबसे प्रिय शिष्य बने !

राजा पंचम सिंह जो की एक अच्छे राजा थे अपने देश व समाज शोषित वंचित के लिए सदैव समर्पित थे मानवता में विश्वास रखते थे ,, जिन्होंने करोणों की संपत्ति वक्फ की साथ ही 24 अक्टूबर 1934 को एक ट्रस्ट का निर्माण कर सभी जाति धर्म को शामिल किया उसमें ऐहराम धारण करने वाले संत महात्माओं फकीरों के निःशुल्क भोजन आदि की व्यवस्था किया ताकि सभी संत समाज में जाकर अध्यात्म ज्ञान ध्यान का प्रचार प्रसार कर सकें जिससे देश समाज का भला हो सके पर आज कोई भी पुरानी व्यवस्था जीवित न रहकर वही सम्पत्ति एकल व्यवस्था के रूप में अधिग्रहित हो चुकी है,, काफी समय से एक परिवार के लोगों के अधिकार छेत्र में है,, वह कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों की अवहेलना करते हुए अपनी मनमानी कर रहे हैं,, जो देश समाज के लिए सायद अच्छा नहीं ।

यहाँ पर अगर हम इस्लामीकरण जैसे शब्द प्रयोग करते हैं,, तो यह धर्मिक कट्टरता को प्रेरित करेगा इसलिए ऐसे शब्दों का प्रयोग मुनासिब नहीं समझते लेकिन धर्मनिरपेक्षता पर्दे के पीछे कहीं ना कहीं यही सत्य प्रतीत होता दिखाई दे रहा है,, जो एक गम्भीर बिषय है।
जिले के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग सायद सरकार को ऐसी सूचना भेजना उचित नहीं समझ रहे कुछ अनुयायी अगर आवाज भी उठा रहे तो उन पर भी पूरे तानाशाही के साथ पैसे के दम्भ पर उनको कोर्ट कचहरी में मानहानि जैसे कानूनों द्वरा रोकने का प्रयास किया जा रहा है,, जो कि बहुत ही निंदनीय दुर्भाग्यपूर्ण है,, यह एक संत के सन्देस की उपेक्षा है।
आज के समय में तो देखने को मिल रहा है,, बड़े बड़े समाज सेवी आपदा विपदा में दो किलो आलू देते हैं,, तो चार लोग खड़े होकर फोटो खिंचवाते हैं, थोड़ा बढ़ चढ़ कर किया तो नाम लिखवाकर पत्थर की सिला तक लगवा देते हैं!
ऐतिहासिक तथ्यों के साथ खिलवाड़ !
हमारे समाज का दुर्भाग्य देखिए जिसने अरबों की संपत्ति देश और समाज के लिए दान की आज उसी को इतिहास के पन्नो से गयाब किए जाने का कुत्शित प्रयास कुछ परिवार के लोगों द्वरा लगभग 35 वर्षों से किया जा रहा है, राजा पंचम सिंह द्वरा बनाए गए नियम कानून को दरकिनार कर अपनी बनाई गई व्यक्तिगत व्यवस्था को अनुयायियों पर थोपा जा रहा है,, यह निंदनीय है,, ऐसा कहना किसी लेखक न होकर अनुयायियों का है,, कुछ पेपर किताबों से खोज करने से पता चलता यही सत्य है!
वर्तमान सरकार को व सम्बंधित अधिकारियों को अनुयायियों की समस्याओं पर ध्यान दे ! कुछ ऐतिहासिक फैक्ट चेक करते हुए न्योचित कार्यवाही करे ताकि समाज को एक सकारात्मक संदेश जा सके,हमारे महात्माओं द्वरा दी गई व्यवस्था हमारी सभ्यता संस्कृति रूपी विरासत की रक्षा हो सके साथ ही समाज को बंटने रोका जा सके!
अब देखना यह होगा की वर्तमान सरकार में बैठे हुए संबंधित अधिकारी ऐसे विषयों पर ध्यान कब देते हैं,, य फिर भिवत्स रूप में परिवर्तित होने तक इंतजार किया जाता है,, ताकि राजनीतिक मुद्दा बनाया जा सके !…..लेखक संजय सिंह चौहान,, मैनपुरी
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