श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन राजा हरिश्चंद्र की कथा का किया गया बखान

ग्लोबल टाईम्स 7 डिजिटल न्यूज नेटवर्क टीम कंचौसी समाचार संपादक डॉ धर्मेन्द्र गुप्ता।
ग्राम घसापुरवा में आयोजित 9 दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन मंगलवार को महारास के साथ सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कथा का बखान किया गया।कथा के सुनाते हुए राजेश शास्त्री ने बताया कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में वशिष्ट मुनि आते हैं और बताते हैं कि तीनों लोक में राजा हरिश्चंद्र का डंका बज रहा है। बचपन से लेकर आज तक उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला और न ही छल व प्रपंच का सहारा लिया है। सभा में महर्षि विश्वामित्र भी बैठे थे। उन्होंने कहा कि ऐसा हो ही नहीं सकता, धरती पर जन्म लेने वाला झूठ अवश्य बोलता है। इस पर उपस्थित सभी देवताओं व मुनियों ने कहा कि आप राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा ले सकते हैं। महर्षि विश्वामित्र ने पहले तो छल से राजा हरिश्चंद्र के पास से लक्ष्मी, धर्मदेव व सत्यदेव को ले लिया और इनकी जगह दरिद्र नारायण को बैठा दिया। तत्पश्चात वे सुअर का वेष बनाकर राजा के बाग में घुस गए और उसे तहस-नहस कर दिया। माली की शिकायत पर क्रोधित राजा हरिश्चंद्र ने जब सुअर की तलाश की तो उन्हें साधु वेषधारी विश्वामित्र मिले। उन्होंने कहा कि आप के बारे में बहुत सुना है, मुझे भी आपसे दान की आशा है। इस पर राजा ने पूछा कि आपको क्या चाहिए। तब ऋषि ने उनसे वचन लिया कि वे अपने वादे से मुकरेंगे तो नहीं। राजा ने कहा कि ऐसा न कभी हुआ है और न होगा। तब महर्षि विश्वामित्र ने उनसे उनका राजपाट मांग लिया और जब राजा के पास कुछ नहीं बचा तो 60 भर सोना भी मांगा। राजा ने कहा कि इसके लिए उन्हें समय चाहिए और वे अपनी पत्नी तारा व पुत्र रोहित के साथ वाराणसी पहुंचे। यहां उन्होंने खुद, पत्नी व पुत्र को 60 भर सोने के एवज में कालू भंगी रूपी सत्यदेव को बेच दिया और कालू भंगी के यहां नौकरी करने लगे। विश्वामित्र यहां भी नहीं रूके। उन्होंने सांप का रूप धारण कर रोहित को डंस लिया। तब मां तारा ने अपनी साड़ी आधी फाड़कर रोहित का कफन बनाया और उसमें लपेटकर उस घाट पर पहुंची जहां राजा हरिश्चंद्र नौकरी कर रहे थे। देर रात पहुंची तारा से उन्होंने कहा कि इस समय तो शवदाह संभव नहीं है, सुबह होगा। रात में विश्वामित्र ने तारा के मुंह पर खून लगा दिया और कालू से कहा कि घाट पर एक डायन है जो बच्चों का खून पी रही है। तब कालू ने हरिश्चंद्र को आदेश दिया कि डायन की हत्या कर दो। अब राजा हरिश्चंद्र के सामने दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो गई। एक तरफ पत्नी व पुत्र का मोह और दूसरी तरफ मालिक का आदेश। उन्होंने पत्नी की हत्या करने का फैसला कर लिया। सुबह जैसे ही उन्होंने तारा की हत्या करने के लिए तलवार उठाई, इंद्र प्रकट हुए और तलवार को पकड़ लिया। यह देख विश्वामित्र का भ्रम टूट गया और सभी अपने असली वेष में आ गए। उन्होंने सारी कहानी बताई और मूर्छित पड़े रोहित को होश में ला दिया। राजा हरिश्चंद्र को उनका राजपाट लौटा दिया गया और रोहित को अयोध्या का राजपाट सौंपा गया जहां उन्होंने रोहिताश नाम से राज किया।