मजदूर श्रमिकों के लिए कोई एजेंडा नहीं-शर्मा

मजबूत श्रमिक संगठन वक्त की जरूरत, बाल श्रम पर लगाम के प्रति प्रयास नाकाम
जीटी-70017, राम प्रकाश शर्मा ब्यूरोचीफ औरैया।
01 मई 2023
#औरैया।
आज के दौर में मजदूरों की दशा बद से बदतर होती चली जा रही है। इस ओर शासन-प्रशासन मजदूरों का कितना हित चिंतन कर रहा है किसी से छिपा नहीं है। अनगिनत कल कारखाने बंद हो जाने से लाखों लोगों को बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ रहा है। इतना ही नहीं नौकरियों के नाम पर भर्तियां समाप्त सी हो गई है। पढ़ा-लिखा युवा नौजवान नौकरी की चाहत में थक हार कर फुटपाथी बन गये हैं। शासन-प्रशासन के पास इन मजदूरों बेरोजगारों के लिए कोई भी एजेंडा प्रतीत नहीं हो रहा है। मजबूत मजदूर श्रमिक संगठन की इस दौर में बहुत बडी आवश्यकता है। बाल श्रम पर लगाम लगाने के प्रयास भी नाकाम साबित हुए हैं। मजदूर दिवस मनाने भर से मजदूरों की समस्याएं खत्म नहीं हो जाती हैं, इसके लिए शासन व प्रशासन को मजदूरों के हित में चल रही योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की महती आवश्यकता है। मनरेगा में 90 दिन काम की गारंटी भी हवा हवाई साबित हो रही है, जिससे मजदूर दर-दर भटकने को मजबूर है। मजदूर दिवस के अवसर पर भारतीय श्रमिक समाज कल्याण समिति के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने अपने वक्तव्य दिए हैं।
भारतीय श्रमिक समाज कल्याण समिति के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम प्रकाश शर्मा ने मीडिया के समक्ष अपने वक्तव्य देते हुए कहा कि समाज की बुद्धिजीवी वर्ग के लोग आगे आकर समाज के दबे कुचले शोषित वर्ग की लोगों की सहायता करें। उन्होंने कहा कि यह देश का दुर्भाग्य है कि वर्तमान चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में कोई कार्य योजनाएं पेश नहीं की गई है। उन्होंने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि बुद्धिजीवी वर्ग आगे निकल कर आये और मजदूरों, किसानों, बाल श्रमिको के कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायें। कोरोना काल में अनगिनत कल कारखाने उद्योग धंधे चौपट होकर बंद हो गये हैं। इतना ही नहीं नौकरी के नाम पर नौजवानों को लाली पॉप तो मिलता है, लेकिन अमलीजामा से कोसों दूर रह जाते हैं। जिससे लाखों की संख्या में पढ़ा लिखा युवा श्रमिक बेरोजगार होकर फुटपाथों पर अपनी मान मर्यादा को भूलकर रेहड़ी अथवा छुटपुट रोजगार करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा है। केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही मनरेगा योजना में 90 दिन काम देने का वायदा किया गया था, लेकिन यह वायदा हवा हवाई साबित हो रहा है। मजदूरों को 90 दिन तो छोड़िए आधे दिनों भी काम नहीं मिलता है। जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह मनरेगा योजना ठंडे बस्ते में जाने वाली की है। मजदूरों के प्रति यह योजना सरकार की संवेदन शीलता पर सवालिया निशान लगा रही है। इसके अलावा बाल श्रमिकों की बढ़ती संख्या विचारणीय बिंदु है। इस पर शासन व प्रशासन को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। बाल श्रमिक मजदूरी करने को क्यों विवश हो रहे हैं इस पर भी मंथन करने की बड़ी जरूरत है। संभ्रांत लोगों को मजदूरों बाल श्रमिको को कांटो भरी राह से उनकी मजबूरी समझते हुए निकालने की महती आवश्यकता है। इसके साथ ही केंद्र व प्रदेश सरकार को मजदूरों के हित में बनाई गई कार्य योजनाओं को मजदूरों के हितार्थ अमलीजामा पहनाया जाना अनिवार्य है।