उत्तर प्रदेशलखनऊ

अभिमान मानव जीवन के पतन का मूल कारक
मोह के चक्कर में फंसकर मनुष्य भव सागर में ही पड़ा रहता है


ग्लोबल टाइम्स-7 न्यूज़ नेटवर्क
राकेश कुमार मिश्र
संवाददाता तहसील मैंथा
14 मार्च 2023
शिवली कानपुर देहात, अहंकार मनुष्य के बिनाश का मूल कारण होता है, यदि अपने आप को तथा अपने परिवार को सुरक्षित रखना है तो इस दुर्गुण को अपने पास फटकने न दें, यह संदेश श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन व्यासपीठ पदासीन आचार्य श्री राम आशीष जी महाराज द्वारा समाज को दिया गया |
शिवली नगर पंचायत के देवनगर स्थित मग्नेश्वर माँ गार्गी मंदिर में आयोजित नौ दिवसीय श्री मद्भभागवत कथा के दूसरे दिन की कथा के दौरान आचार्य जी ने कहा कि आवश्यकता से अधिक होशियारी स्वयं के लिए घातक होती है क्योंकि इससे व्यक्ति में अहंकार की उत्पत्ति होने लगती और मनुष्य अपने अहं में दूसरे का सम्मान करना भूल जाता है, उदाहरण देते हुए व्यास जी ने बताया कि राजा दक्ष को प्रजापति का पद मिल जाने के उपरांत अहंकार आ गया था और भगवान शिव की शक्ति को जानने के बाद भी उनको आयोजित यज्ञ में न बुला कर उनका अपमान किया और उसका परिणाम यज्ञ विध्वंस होने के साथ साथ दक्ष का सभी कुछ नष्ट हुआ |इसी तरह इतने बड़े हुए महाभारत के पीछे भी दुर्योधन का अहंकार ही प्रमुख कारण था, अपने अहंकार के कारण ही कुटिल विचारों से ग्रसित होकर अपने चचेरे भाइयों के साथ अन्याय किया जिसका परिणाम पूरे कौरव वंश का विनाश हुआ, अत: अहंकार रुपी विष से सदैव दूर रहना चाहिए |वहीं आचार्य जी ने कहा कि कभी दूसरे की कमियाँ नहीं देखना चाहिए यदि वास्तव में अपना कल्याण चाहते हो तो खुद की कमियों को देखकर उनका सुधार करना चाहिए
द्वापरयुग के समाप्त होने के बाद समयानुसार कलयुग का आना निश्चित था और महाभारत समाप्त हो जाने के बाद कालान्तर में सभी पाण्डव अवस्थानुसार हस्तिनापुर का राज्य अपने पौत्र परिक्षित जी को सौंप कर हिमालय की ओर जाकर अपने अपने शरीर का परित्याग कर दिया, इधर कलियुग का आगमन हो जाने के कारण शिकार खेलने गए राजा परिक्षित जी कलियुग जो एक मनुष्य के रूप में गाय व बछड़े रूपी धर्म को मारते हुए सामने आ गया यह अन्याय देखकर परिक्षित जी क्रोधित होकर अपना धनुष बाण उठा लिया तभी कलियुग ने हांथ जोड़ कर समयानुसार अपने आने का संदेश दिया और उनसे रहने का स्थान मांगा तो परीक्षित जी ने स्वर्ण में रहने को कहा सिर में स्वर्ण मुकुट पहने होने के कारण उसी पर बैठ गया, परिणाम धार्मिक आचरणों से परिपूर्ण राजा की बुद्धि कलियुग के सानिध्य से परिवर्तित हो गई और प्यास बुझाने को श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पहूंचकर मरे हुए सांप को ऋषि के गले में डाल दिया जिस कारण से सात दिनों के उपरांत मौत हो जाने का श्राप मिला, घर आकर चिंतित होकर राजा परिक्षित जी ने अत्रि, विश्वामित्र, परशुराम आदि अनेक श्रेष्ठ संत महात्माओं को बुला कर सात दिन में मृत्यु का श्राप पाए व्यक्ति को क्या करना चाहिए जिससे उसे मोक्ष प्राप्त हो सके, इसी मंत्रणा के बीच एक लघु स्वरूप अति तेजस्वी बालक श्री सुखदेव जी का आगमन हुआ |

Global Times 7

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