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ग्यारहवें विश्व वैदिक सम्मेलन में 42 बटुकाें का हुआ सामूहिक उपनयन संस्कार

ग्लोबल टाइम्स 7
न्यूज नेटवर्क
उन्नाव
फुन्नी त्रिपाठी

उन्नाव बिकास खंड बीघापुर लगी आजम मुख्यालय पाटन बैसवाड़ा ब्राह्मण उत्थान समिति के बैनर तले जिले के छाँछीराईखेड़ा,सुमेरपुर स्थित एम.जी.कॉलेज ऑफ साइंस एंड कल्चर में शुक्रवार को एकादश विश्व वैदिक सम्मेलन एवं सामुहूक उपनयन संस्कार संम्पन्न हुआ।इस दौरान नैमिषारण्य के यज्ञाचार्य आशीष अवस्थी समेत सात वेदपाठी ब्राह्मणों ने वेदमंत्रों की ऋचाओं के बीच 51 वाचकों का यज्ञोपवीत संस्कार कराया अरविंदो आश्रम,उत्तराखंड से पधारे प्रख्यात संत स्वामी ब्रह्मदेव जी महाराज और शक्ति साधना आश्रम विंध्याचल धाम से पधारी साध्वी भक्ति किरण श्रीनिधि ने ब्राह्मण वटुकों को आशीर्वाद प्रदान किया। बैसवाड़ा ब्राह्मण उत्थान समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार अशोक पाण्डेय ने संतद्वय का अभिनंदन -वंदन किया और संस्था की जानकारी देते हुए कहा कि अब तक समिति की ओर से 1251 वटुकों का जनेऊ संस्कार कराया चुका है।14 वर्ष पहले इस समिति का गठन हुआ था। तब से आज तक यह समितिब्रह्मानों के उत्थान के काम कर रही है।


ब्राह्मण वटुकों को आशीर्वचन प्रदान करते हुए स्वामी ब्रह्मदेव महाराज ने कहा कि हममें भीतर का ज्ञान बहुत है लेकिन अंदर का ज्ञान हमारे पास बहुत कम है।यज्ञोपवीत सिर्फ धागा नहीं,यह संस्कार बीज है।इसे निरंतर खाद-पानी देते रहें। हमें जितना आत्मज्ञान होगा,हमारा जीवन उतना सरल,सहज और सुखद होगा। यह सारा आयोजन दरअसल मानव चेतना का विकास हो,जिससे वह विश्व में वैदिक संस्कृति और सभ्यता का प्रकाश फैला सके ।हमें अपनी आत्मा और ज्ञान को जागृत करना होगा ताकि इस धरती को स्वर्ग बनाया जा सके ।हर व्यक्ति को ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे कि आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन हो सके।उन्होंने कहा कि जब घास का हर टुकड़ा बिना किसी वैमनस्य के धरती को हरा-भरा बनाने को हर क्षणतत्पर रहता है तो मनुष्य ऐसा क्यों नहीं कर सकता।उन्होंने कहा कि धरती को स्वर्ग बनाना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए
साध्वी भक्ति किरण श्रीनिधि ने कहा कि बच्चों को शिक्षा के साथ संस्कार जरूर दें।बच्चों को ज्ञानी बनाएं वे संस्कारी बन जाएंगे। उन्होनें कहा कि बच्चे की उद्दंडता के लिए मां,मूर्खता के लिए पिता,कृपणता के लिए वंश दोष और दरिद्रता के लिए आत्मदोष जिम्मेदार होता है। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने हर मानव को आदेश दिया कि वे आत्ममंथन करें कि हम कौन हैं?भगवान ने हमें क्यों बनाया है। हम सारी सृष्टि को वैदिक विश्व तो बनाना चाहते हैं।विश्वगुरु बनना चाहते हैं, लेकिन हमें सोचना होगा कि आत्मनिरीक्षण के बिना यह कैसे संभव है?अपना निरीक्षण किए बिना हम दूसरे का निरीक्षण कैसे कर सकते है। गोत्र की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि है।री धमनियों में ऋषि का रक्त भ रहा है।ऋषियों की भाषा संस्कृत है ।उन्होनें जानना चाहा कि हम जिस ऋषि के गोत्र के हैंउनकी किताब क्या हमारे घर में है। भारत की प्रतिष्ठा संस्कृत और संस्कृति के उठान में निहित है । वैदिक परंपरा से गुजरे बगैर विश्व को वैदिक विश्व नहीं बनाया जा सकता ।उन्होंने कहा कि वैदिक परंपरा में मनुष्य स्वतः एक जाति है। वैदिक युग में मनुष्यों में वर्णव्यवस्था थी।अब तो लाभ देखकर लोग जाति बदल रहे हैं। क्या इस तरह से वैदिक विश्व का निर्माण हम करेंगे। वैदिक परंपरामें व्यक्ति के जन्म से ज्यादा अहम उनके कर्म,व्यवहार और आचरण हैं। जनेऊ आपके कंधे पर ऋषियों,वेदों और नहरतीय संस्कृति का भार है।यशस्वी और तेजस्वी बनने की उन्होंने बटुकों से अपील की।
इस अवसर पर गोविंद नारायण शुक्ल,कमल नारायण,वर्मा,कमलाकांत वाजपेयी,जागेश्वर अवस्थी,प्रमोद नारायण त्रिवेदी, नरेश तिवारी टेढ़ा,राजीव दादा आदि को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर संस्था की स्मारिका ब्राह्मण और राजबख्श सिंह की पुस्तक कही-अनकही का विमोचन किया गया। स्वामी ब्रह्मात्मानंद सरस्वती और स्वामी अमरीश्वरानंद ने बटुकों को धार्मिक पुस्तकें भेंट की। इस अवसर पर सुंदरलाल वाजपेयी,आनंद मोहन,ऋषि शुक्ला,गुड्डू तिवारी,राजीव शर्मा,आलोक पांडेय,आशुतोषमणि त्रिपाठी,श्रीकुमार वाजपेयी,झिलमिल जी महाराज,मनोज पांडेय,डॉ. रचना पांडेय आदि
मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन उमादत्त त्रिपाठी ने किया।

42 बटुकाें का हुआ उपनयन संस्कार

विश्व वैदिक सम्मेलन में 63 बटुकों का पंजीकरण हुआ। 42 बटुक उपनयन संस्कार में शामिल होकर यज्ञोपवीत धारण किया।

यह विभूतियां हुयी सम्मानित

डां काशीनाथ त्रिपाठी, प्रमाेद शुक्ल, गाेविंद नारायण शुक्ल काे समाज सेवा के लिए अनमोल रत्न पुरूस्कार, जागेश्वर अवस्थी काे लाइफ टाइम एचीवमेंट पुरूस्कार से अलंकृत किया गया।

Global Times 7

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