यह कहां “नेता जी” भूले गांव में सिर्फ मिलेगा “प्रधान एक”, जबकि आसानी से मिलेंगे “पंचायत वार्ड सदस्य ग्यारह”

:- पंचायत वार्ड सदस्यों का खुलेआम हक छिन रहे गांवों के जिम्मेदार व राजनीतिक दलों से भी हुए उपेक्षित
:- राजनीति दलों के प्रत्याशियों का सम्पर्क भी गांवों के प्रधानों तक ही हैं सीमित, पंचायत वार्ड सदस्य हुये नजरंदाज
आलोक मिश्रा
ग्लोबल टाईम्स 7
न्यूज नेटवर्क
कानपुर / लखनऊ
पंचायतीराज अधिनियम में शासन की बहु चर्चित पार्लियामेंट गांव की सरकार को अहम माना जाता है, जो निचले स्तर पर गांवों के विकाश का अभिन्न अंग हैं । यह इसमें प्रधान व पंचायत वार्ड सदस्यों का चुनाव उस गांव की जनता द्वारा अपने अपने मताधिकार के प्रयोग से होता है । गांव में जनता द्वारा चुने हुये ग्राम प्रधान व पंचायत सचिव के साथ ही पंचायत वार्ड सदस्यों की बैठकों में उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है,जहां ग्राम पंचायत के प्रत्येक वार्डों के विकाश कार्यों से सम्वंधित कार्य योजनाओ की रूपरेखा वार्ड सदस्यों के सहमति पर खाका तैयार होते ग्राम पंचायतों के सभी कार्य सम्पन्न कराये जाने अर्थात पंचायतीराज एक्ट के तहत शासनादेश के मुताबिक प्रस्तावित हैं ।
ग्राम पंचायतों में प्रधान व संबंधित सचिव के साथ पंचायत स्तरीय बैठक बोर्ड में ग्राम पंचायत सदस्यों की भी अहम भूमिका निर्धारित है।
लेकिन ठीक इन सभी के विपरीत गांवों का हाल खुलेआम चल रहा है। यदि बात की जाये जनपद के सिर्फ बिल्हौर तहसील के ही चारो विकाश खंडों यथा चौबेपुर,ककवन शिवराजपुर,बिल्हौर के ग्राम पंचायतों की तो अधिकांशत: ग्राम पंचायतों के ग्राम पंचायत सदस्यों का दर्द है कि उनकी ग्राम पंचायतों में निर्धारित समय पर न तो बैठकें आयोजित होती है और न ही उन्हें इस बात की भी जानकारी दी जाती है की ग्राम पंचायत में किस जगह कौन सा व क्या विकास कार्य, कितनी लागत से कराये जा रहे हैं।
हां इतना जरूर देखने में आ रहा है कि जहां जो भी विकास कार्य हो रहे हैं वहां उस गांव का प्रधान स्वयं या,उनके परिजन अर्थात चहेते लोग ही कराते नजर आ रहे हैं।
पंचायत सदस्यों की उपेक्षाओं के चलते अब अधिकांश ग्राम पंचायतों में प्रधानों की खुलेआम मनमानी चलते हुए देखी जा सकती है। जहां उपेक्षित वार्ड सदस्यों में खासी नाराजगी भडकती हुई नजर आ रही है, वहीं कुछ ग्राम पंचायतों में कार्यों की जांच कराए जाने की मांग भी पंचायत वार्ड सदस्यों ने उठानी शुरु कर दी है। यूं तो ग्राम पंचायतों के बोर्ड में प्रधान के साथ ही ग्राम पंचायत के सदस्यों की भी अहम भूमिका निर्धारित है, लेकिन अधिकांशत: ग्राम पंचायतों के ग्राम पंचायत सदस्य अपनी उपेक्षा से बेहद परेशान नजर आ रहे हैं। इन ग्राम पंचायत सदस्यों का दर्द है कि प्रधान व संबंधित सचिव द्वारा निर्धारित समय पर ग्राम पंचायत की बैठकर भी नहीं बुलाई जाती है, और न ही उन्हें इस बात की जानकारी दी जाती है कि कौन से काम कितनी लागत से प्रस्तावित है और कहां-कहां पर विकास कार्य चल रहे हैं। ग्राम पंचायत सदस्यों का यह भी कहना है कि संबंधित प्रधानों द्वारा मनमाने तरीके से अपने मन माफिक काम कराए जा रहे हैं, साथ ही जो भी काम हो भी रहे हैं वह प्रधान उनके परिजन या उनके चहेते लोग ही करा रहे हैं। ग्राम पंचायत सदस्यों ने बताया है कि प्रधानों द्वारा ग्राम पंचायत के विकास कार्यों आदि से संबंधित मामलों में उन लोगों से बैठकें आयोजित कर राय मशविरा न किए जाने के साथ उन लोगों के वार्डों में भी विकास की किरण न पहुंचने के कारण उनके वार्डो के लोग भी उन लोगों के प्रति नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं । ऐसे में जिला प्रशासन को चाहिए कि जल्द ग्राम पंचायत की बैठकों में जमीनी धरातल पर सदस्यों को न बुलाए जाने के मामले की गहन जांच कराकर जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, अन्यथा गांवों के ग्राम पंचायत सदस्य एकजुट होकर इसके खिलाफ निर्णायक आंदोलन का बिगुल बजाने को मजबूर हो जायेंगे।अब वह सिर्फ वोट तक ही सीमित नही रहेंगे और न ही चुपचाप बैठेंगे , क्योकि गांव की ही जनता द्वारा प्रधान की तर्ज पर उनका भी चुनाव पंचायत वार्ड से होता है।
रजनीति क्षेत्र में पंचायत सदस्य भी नेताओं द्वारा रहते है हमेशा उपेक्षित
यदि बात की जाए चुनावी माहौल के दौरान भी विभिन्न दलों के राजनीति पार्टियों के प्रत्याशियों द्वारा भी गांवों के पंचायत वार्ड सदस्य हमेशा उपेक्षाओं के शिकार ही रहते हैं,
क्योकि नेता जी का सम्पर्क व सम्वंध भी सिर्फ गांव के प्रधान तक ही सीमित रहता है,और एक वोट बैंक की ठेकेदारी की प्रथा के वशीभूत होकर प्रत्याशी अपना विश्वास प्रधान जी पर साध लेते हैं, जिसमें विश्वनीयता का पूरा खामियाजा प्रत्याशी उठाता रहता है ।
हर गांव का एक प्रधान, पंचायत वार्ड सदस्य मिलेंगे लगभग ग्यारह,
पार्टी चुनावों में कार्यकर्ताओं का ध्यानाकर्षण कराते हुए बताना है कि अपने गांवों में ही उपेक्षाओं का दंश झेल रहे पंचायत वार्ड सदस्यों का भी अहमित का दर्जा होना चाहिये। लोकसभा व विधानसभा के चुनावी माहौल दौरान प्रत्याशियों को अपनी गांव गांव मजबूत पकड बनाने के लिये और विश्वनीयता के शिकार से बचने के लिये भी पंचायत की तीसरी सरकार के मुख्य अंग रूपी पंचायत वार्ड सदस्यों से सम्पर्क साध कर गांवों के हर वार्ड तक पहुचने के लिये अपनी मजबूत पकड बनानी चाहिये, यदि गणना की जाये तो हर गांव में प्रधान की अपेक्षा गांवों पंचायत वार्ड सदस्यों की संख्या कम से कम लगभग ग्यारह तो आसानी से मिल जायेगी ।