आलू की मंदी किसानों की आमदनी बढ़ने की कैसे होगी मंशा पूरी

मुनाफे के बजाए किसानों की लागत रही डूब किसान खेती से रहे ऊब
ग्लोबल टाइम्स-7, डिजिटल न्यूज़ नेटवर्क, जिला ब्यूरोचीफ राम प्रकाश शर्मा औरैया।
बिधूना,औरैया। आलू की मंदी से इस बार किसानों को मुनाफे की कौन कहे उनकी लागत भी डूब रही है जिससे आर्थिक तंगी और कर्जदारी से जूझ रहे किसानों की चिंता और बेचैनी काफी बढी हुई है। आलू उत्पादन में प्रति बीघे में लगभग 10000 रुपए का खर्च आता है और लगभग 20 कुंतल आलू का उत्पादन होता है, ऐसे में इस बार आलू के भाव में आई भारी मंदी के कारण 250 रुपए से 300 रुपए प्रति कुंतल आलू बिकने से किसानों को मुनाफे की कौन कहे उनकी लागत भी डूबती जा रही है जिससे किसानों की चिंता और बेचैनी काफी बढी हुई है। वही शासन द्वारा आलू की मंदी से तबाह किसानों को घाटे से उबारने के लिए कोई कारगर कदम उठाए नहीं गए हैं जिससे किसानों की आमदनी बढ़ने के बजाय लगातार घट रही है ऐसे में आर्थिक तंगी और कर्जदारी से जूझना किसानों की नियत बन चुकी है।
यूं तो सरकार द्वारा किसानों का हितैषी होने का दावा करने के साथ किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लगातार वायदे किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी धरातल पर लिखने में आ रहा है कि किसानों की आमदनी बढ़ने की कौन कहे आमदनी लगातार घटती जा रही है। पिछले लंबे अर्से से प्राकृतिक प्रकोप से बर्बाद हुई फसलों के साथ फसलों की मंदी का दंश झेल रहे किसान आर्थिक तंगी और कर्जदारी से जूझ रहे थे ऐसे में कर्जदारी से उबरने के लिए इस बार बिधूना तहसील क्षेत्र के किसानों ने बड़े पैमाने पर आलू का उत्पादन कर अपना बोझ हल्का करने की मंशा बनाई थी। किसानों ने महंगा खाद बीज लगाकर आलू की बुवाई की थी। शिव चंद्र शाक्य श्याम सुंदर धीरेंद्र सिंह सेंगर सोनेलाल दोहरे जयपाल दोहरे आदि किसानों का कहना है कि प्रति बीघा आलू के उत्पादन में लगभग 10000 रुपए का खर्च आता है वही एक बीघे में लगभग 20 कुंतल तक आलू निकलता है ऐसे में इस बार आलू मंडी में आलू से भाव 250 रुपए प्रति कुंतल से 300 रुपए प्रति कुंतल तक हो गया है, जिससे किसानों को मुनाफे की कौन कहे उनकी लागत भी डूबती जा रही है जिससे आलू उत्पादक किसानों की चिंता और बेचैनी काफी बढ़ी हुई है। पीड़ित किसानों का यह भी कहना है कि सरकार द्वारा किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वायदे तो किए जा रहे हैं लेकिन फसलों की मंदी से किसानों की लागत भी डूबती जा रही है और सरकार अनजान बनी हुई। किसानों की बदहाली के बाबजूद भी किसानों की खुशहाली के झूठे दावे कर अपनी पीठ भी थपथपा रही है वही मौजूदा सरकार की बेरुखी से दुःखी किसान आगामी चुनावों में भाजपा को सबक सिखाने का भी मन बना रहे हैं।