लखनऊ

रेड जोन वाली इटावा लोकसभा सीट पर उभरे भाजपा के कई दावेदार

ब्रजेश पोरवाल, ग्लोबल टाईम्स 7 न्यूज नेटवर्क लखनऊ उत्तर प्रदेश

इटावा। इस वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने देश में चार सौ और यूपी की तो अस्सी में अस्सी सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, लेकिन पार्टी द्वारा कराए गए गुप्त सर्वे में कुछ सीटों पर रेड जोन की रिपोर्ट मिलने से भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों के माथे पर चिंता की लकीरें अभी भी बनी हुई हैं, हालांकि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद मोदी लहर और मजबूत हुई है, फिर भी पार्टी किसी भी तरह की चूक होने की गुंजायश नहीं छोड़ना चाहती। स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए यूपी की सभी अस्सी सीटें गिफ्ट में देने के लिए पूरी जी जान लगाए हुए हैं। ज़ाहिर है कि इसके लिए अगर खतरे वाली सीटों पर मौजूदा सांसदों के टिकट बदलने की परिस्थितियां दिखाई देंगी तो नए दावेदारों को मौका दिया जायेगा।

रेड जोन वाली इन्हीं सीटों में एक इटावा सीट की चर्चा भी पिछले काफी समय से होती आ रही है। 2014 के आम चुनाव में मोदी के नाम की जबरदस्त लहर थी, तो उसमें अशोक दोहरे जैसे निस्तेज नेता ने भी संसद का मुंह देख लिया था, और जीतने के बाद उनके “लापता सांसद की तलाश” करते करते पांच साल बीत गए, आम जनता उनके दर्शन नहीं कर सकी।

इसके बाद 2019 के चुनाव में आगरा सीट से स्थानांतरित होकर अपने गृह जनपद इटावा आए राम शंकर कठेरिया की धमकदार आमद ने पूरे क्षेत्र में एक नई धूम पैदा कर दी थी। लेकिन जैसे जैसे समय आगे बढ़ा, कुछ अवसरवादी ठेकेदारों और प्रॉपर्टी डीलरों ने उन्हें अपने घेरे में इस कदर जकड़ लिया कि आम जनमानस के बीच उनका जैसा जुड़ाव और सहज उपलब्धता तथा जनता के मन में उनकी जैसी स्वीकार्यता होनी चाहिए थी, वह नज़र नहीं आती। एक सजग बुद्धिजीवी ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि अभी एक महीने तक इटावा की नुमाइश चली, धर्म, संस्कृति, समाज, कला, साहित्य, खेल और राष्ट्रीयता से जुड़े अनेक कार्यक्रम हुए, जिनमें किसी भी कार्यक्रम में सांसद कठेरिया को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित हुए नहीं देखा, जबकि सदर विधायक सरिता भदौरिया इतने कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि हुईं कि भयंकर शीत के चलते उनकी तबीयत तक खराब हो गई। इस पर स्वयं सांसद कठेरिया को विचार करना होगा कि उनके साथ रहने वाले स्वार्थी सलाहकारों की घेराबंदी ने उन्हें जनस्वीकार्यता से कितनी दूर कर दिया। क्या इन दरबारी सलाहकारों का ये फर्ज नहीं बनता था कि वे क्षेत्र के गणमान्य नागरिकों के यहां उन्हें ले ले जाकर चाय पर चर्चा के माध्यम से एक आत्मीय रिश्ता जुड़वाते।

दरअसल, किसी भी नेता का जनप्रतिनिधि चुन जाना इतनी बड़ी बात नहीं है जितना कि चुन जाने के बाद, उसकी अपनी जन स्वीकार्यता भी स्थापित होना। ठेकेदार और प्रॉपर्टी डीलर साधन सुविधाएं तो उपलब्ध करा सकते हैं, लेकिन वोट नहीं दिला सकते। क्योंकि उनका जनता से कोई जुड़ाव नहीं होता। उन्हें तो सड़क और जमीन ही दिखाई देती है। और वे यह भी चाहते हैं कि उनके अलावा उनके नेता से कोई और करीब न हो जाए। जबकि जन नेता बनने के लिए जमीनी राजनीति से जुड़ना होता है। पूर्व सांसद स्व. चौधरी रघुराज सिंह, पूर्व विधायक स्व. अशोक दुबे ऐसे ही जननेता थे, जो बड़ी सादगी और सरलता के साथ रिक्शे पर भी बैठकर जनता के काम कराने निकल पड़ते थे। महेंद्र राजपूत की विनम्र मिलनसारिता की तारीफ उनके विपरीत राजनीतिक विचारधारा के लोग आज भी करते मिल जाते हैं। केवल चुनावी समय की सक्रियता से जन स्वीकार्यता हासिल नहीं हो सकती। अब पब्लिक बहुत समझदार हो चुकी है, सब जानती है।

बहरहाल, कई महीने पूर्व लखनऊ से प्रकाशित एक बड़े अखबार में ये विश्लेषण छपा था कि रेड जोन वाली सीटों, ( जिनमें इटावा की सीट भी शामिल है क्योंकि यह समाजवादी पार्टी का गृह जनपद है और अब “चाचा भतीजा” भी एक हो गए हैं ) को लेकर भाजपा के चुनावी रणनीतिकार गहन मंथन में लगे हुए हैं और ऐसे उपयुक्त उम्मीदवारों की तजबीज करने में लगे हुए हैं, जो हर हाल में रेड जोन की सीटें भी निकाल कर दे सकें।

ज़ाहिर है कि इस स्थित को भांप कर ऐसी सीटों पर नए दावेदारों ने अपनी उपस्थिति के दांवपेच आजमाने शुरू कर दिए हैं। इनमें इटावा लोकसभा की रिजर्व सीट पर भी कई नए दावेदारों की चर्चा शुरू हो गई है। बहुत पहले से एक नाम कन्नौज से विधायक और योगी सरकार में मौजूदा कैबिनेट मंत्री असीम अरुण का भी चर्चा में है, वे एक लोकप्रिय आईपीएस अधिकारी के रूप में काफी चर्चित रहे हैं, उन्हें भी एक सशक्त प्रत्याशी के रूप में देखा जा रहा है। इसके अलावा समीर दोहरे, राधेश दिवाकर, पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे और “इटावा कल आज कल” पुस्तक लिखने वाले हरीश कुमार, सिद्धार्थ शंकर तथा प्रमोद दिवाकर ने होर्डिंग पोस्टर आदि लगाकर तथा विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी सक्रिय भागीदारी दिखाकर अपनी दावेदारी ठोंकनी शुरू कर दी है।

अब देखना यह है कि पार्टी इनमें से किसी नए चेहरे को मौका देती है या अपने मौजूदा सांसद पर ही फिर से दांव आजमाएगी, पड़ताल जारी है।

सुधीर मिश्र
संपादक, स्वर इंडिया, इटावा

Alok Mishra

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