डिजिटल मीडिया की बढ़ती सक्रियता घटती जबाब देही एक बड़े बदलाव के तरफ इशारा तो नहीं!

Global times 7 News Network
Lucknow UP
जिस तरह देश में बीते कुछ वर्षों से यह देखने को मिल रहा है ,, डिजिटल मीडिया क्रांति एक बड़े बदलाव के साथ आगे बढ़ रहा है,, कहीं ना कहीं उन महारथियों के कार्यवाहकों को भी आज पीड़ा होती दिखाई दे रही है ,,, जो मंच से डिजिटलीकरण के कसीदे पढ़ते नजर आते थे !
हमारा लिखना राजनीति को टारगेट करना बिल्कुल नहीं क्योंकि यहाँ राजनीति का कोई मतलब नहीं यहाँ लोकतंत्र के आवाज की है, अब वह आवाज चाहे किसी मंच से आ रही हो या फिर पेपर के माध्यम से हो या फिर किसी शोषलमीडिया डिजिटल पोर्टल के माध्यम से हो आवाज तो आवाज है!
अब सवाल यह उठता है,, अश्लीलता, ब्लैकमेलिंग, आदि को नियंत्रित कैसे किया जाए ,, जो अच्छे तरीके से सिस्टम पर कार्य कर रहे हैं,, वो कुछ कहना चाह रहे हैं, तो उनको सुनकर शुरक्षा कैसे दिया जाए यह एक गम्भीर विषय है,, पर इतना भी गंभीर नहीं पर जब आगे बढ़ रहा तो रोंका तो जा नहीं सकता पर विचार कर फैसला लिया जा सकता है।
डिजिटल मीडिया एक पानी के बहाव तरह है, जो एक विकराल धारा में तब्दील हो चुका है,, जब पानी का बहाव तेज होता है,, तो उसको एकदम से न रोककर एक दिशा दे दिया जाता है,, तो उसका लाभ भी मिल जाता है,,, हानि भी होने से बच जाता है।
भारत एक आबादी वाला देश है,, लेखक व विचारकों कमी नहीं है,, जब लाखों करोड़ों के संख्या में प्लेटफार्म मौका दे रहे हैं तो लोग लिखेंगे अपनी बात रखेंगे अब किसका नुकसान है, किसका फायदा यह तो वही बताएगा अब यहाँ पर एक बात यह भी है ,, हम अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए किसी को पैरों तले रौंद तो नहीं सकते किसी की आवाज को दबा तो नहीं सकते क्योंकि लोकतंत्र है,, सबको अधिकार है, की एक निश्चित दायरे में रहकर अपनी बात रखे ,, माध्यम कुछ भी हो सकता है।
सरकार को ऐसे विषयों पर समय रहते विशेष ध्यान देने की जरूरत है,, यह मेरा व्यक्तिगत विचार हैं! …..संजय सिंह की कलम से !

अब आगे देखिए !
(संजय द्विवेदी महानिदेशक, भारतीय संचार संस्थान दिल्ली)
पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली में ‘डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन’ की ओर से ‘फ्यूचर ऑफ ‘डिजिटल मीडिया’ विषय पर एक सम्मेलन का आयोजन हुआ । उसमें भाग लेने आए ऑस्ट्रेलिया के पूर्व संचार मंत्री और सांसद, पॉल फ्लेचर ने एक समाचारपत्र को दिए गए अपने साक्षात्कार में कहा कि आने वाले दिनों में भारत डिजिटल दुनिया में सबसे आगे होगा। अगले दस सालों में डिजिटल क्षेत्र में सबसे बड़ी संचार क्रांति होने वाली है। बस इस दौरान सबसे ज्यादा ध्यान फेक न्यूज को रोकने के साथ-साथ क्वालिटी कंटेंट या गुणवत्तापूर्ण सामग्री और बिजनेस मॉडल को अपग्रेड करने की जरूरत पर ही होगा।
पिछले एक दशक में देश में डिजिटल मीडिया और डिजिटल सहूलियतों का इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ा है, लेकिन इस सबके बीच दो चीजों की अनुपस्थिति साफ देखी जा सकती है। एक विश्वसनीयता और दूसरी, जवाबदेही। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह हैं। यदि जवाबदेहीतय होगी, तो डिजिटल मीडिया कीविश्वसनीयता खुद बढ़ जाएगी।जहां तक जवाबदेही के अभाव काप्रश्न है, तो इसकी कई वजह हैं। पहली वजह है,वर्तमान समय में उपलब्ध बेहद सस्ती और सर्वसुलभ तकनीकी सुविधाएं । तेज इंटरनेट जैसी चीजों ने हर किसी के लिए बहुत आसान बना दिया है कि वह जब चाहे नाममात्र के खर्चे में अपना खुद का समाचार पोर्टल, यूट्यूव चैनल पॉडकास्ट शुरू कर सकता है। इसके माध्यम से लोगों को शिक्षा, सूचना समाचार व मनोरंजन देते समय इस तरह के उपक्रम शुरू करने वाले लोग भूल जाते है कि इस सबकी भी कुछ संवधानिक,सामाजिक, राजनैतिक और मनोवैज्ञानिक सीमाएं भी हो सकती हैं।गैर जिम्मेदारना रवैये की शुरुआत यहीं से होने लगती है और फिर अपने दायित्व की उपेक्षा एक आदत बन जाती है। दूसरी वजह है, डिजिटल साक्षरता पर ध्यान न दिया जाना। वैसे जवाबदेही से बचने में बड़ी कंपनियां भी पीछे नहीं हैं। फेसबुक और ट्विटर जैसे कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल वर्षों से फेक न्यूज और हेट कंटेंट के प्रसार के लिए किया जाता रहा है। इन्हें रोकने के पुख्ता उपाय नहीं किए जा सके हैं। चूंकि, अभी तक हमारे यहां सब कुछ स्व-नियमन के भरोसे चल रहा है, इसलिए जवाबदेही को लेकर ये किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से आसानी से बच जाती हैं। उनका देशकी अखंडता और लोकतांत्रिक मूल्यों से कोई लेना-देना नहीं है। उनका एक ही मंत्र है, जितना बड़ा यूजर बेस, उतना ही बड़ा कारोबार ट्विटर के छह करोड़ फेसबुक के एक अरब, इंस्टाग्राम के डेढ़ अरब, ये सब मिलकर दुनिया की करीब चालीस प्रतिशत आबादी के बराबर हो जाते हैं। इन्हें अपने साथ बनाए रखने के लिए हर प्रकार के समझौते करने को तैयार ये बिग टेक कंपनियां बाकी साठ फीसदी लोगों के बारे में शायद ही सोचती होंगी।भारत की समस्या यह नहीं है कि वह डिजिटल मीडिया या दूसरी डिजिटल विधाओं सेवाओं की उपलब्धता और उपयोग के मामले में सबसे बड़ा यूजरबेस वाला देश बनने जा रहा है। समस्यायह है कि इसकी भाषायी, सांस्कृतिकविविधता के बीच, कोई भी चीज याबात, एक जगह के लोगों के लिए सही हो सकती है, तो वही चीज दूसरी जगहसमाज पर हानिकारक असर पैदा करने वाली हो सकती है। भौगौलिक सीमाओं से परे रहने वाला और खुद को सभी बंदिशों से ऊपर मानने वाला डिजिटल मीडिया, आवश्यक नियमन के अभाव में स्वतंत्र से ज्यादा उच्छृंखल नजर आता है। लोग बार-बार किसी झूठ को देखने के बाद उस पर विश्वास करने लगते हैं। वर्ष 2016 में ‘स्टेनफोर्ड ‘हिस्ट्री एजुकेशन ग्रुप’ की एक रिसर्च के दौरान यह चौकाने वाला नतीजा सामने आया कि विभिन्न सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले 80 प्रतिशत छात्र विज्ञापन और खबरों के बीच फर्क नहीं कर पाते हैं।