संत से मिलने के लिए भी ईश्वरीय आदेश आवश्यक

जीटी-70017 राम प्रकाश शर्मा ब्यूरोचीफ औरैया।
3 मार्च 2023
#दिबियापुर ,औरैया।
दिबियापुर में प्राचीन सेहुद मंदिर पर चल रही राम कथा के पांचवे दिन सोमवार को जिलाधिकारी प्रकाश चंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि माता सीता के हरण की लीला हुई थी। हरण नही हुआ था।जब तक करहुं निशाचर नाशा। तब तक करहु अग्नि में वाशा। आदर्श पुरुषोत्तम भगवान राम माता सीता के साथ तय करते है कि अब सबसे श्रेष्ठ नरलीला करनी है। अनाचार के विरुद्ध युद्ध के लिए कोई कारण तो होना चाहिए।इसलिए पाप के नाश के लिए सीता के प्रतिबिम्ब के हरण को कारण बनाया गया। रावण पूर्व जन्म के श्राप के चलते खुद भगवान की प्रतीक्षा कर रहा है कि ईश्वर आकर मेरा उद्धार करें।यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रहते तत्र देवता की व्याख्या में जिलाधिजारी ने कहा नारी होना स्वयं में एक वरदान है। नारी कभी गलत नही हो सकती। इसलिए सूर्पनखा ने उद्धार का कारक बनी। सुर रंजन भंजन सो मये जाय बेर हठ करके प्रभु के बाण से प्राण त्याग करूंगा। तब एक का कारक परम सुंदरी सूर्पनखा बनी। राक्षस एक व्यक्ति नही बल्कि एक प्रवृति है।
मानव खुद चाहे जो प्रवृत्ति हो जाये।जब मानव की मै कुछ करब ललित नरलीला। तुम पावक में करहु निवासा। माता अग्नि की सुरक्षा में ले गई और सीता के प्रतिरूप प्रतिबिम्ब आया।या मर्म लक्ष्मण भी नही समझ पाये। किसी घर की योजना के लिए पति-पत्नी की सहमति आवश्यक है। बाद में अग्नि से वापस लेते है।ऐसे समय अंजनिनन्दन का भगवान के जीवन मे प्रवेश होता है। सुग्रीव के साथ सबसे बलशाली हनुमान जी है। ब्रामण रूप रखकर हनुमान जी भगवान से मिले।यही भक्त और भगवान का प्रथम मिलान है।प्रभु पहचान परेहु चरना। सो सुख उमा जाहि नहीं बरना। तन पुलकित हुआ शब्द निकले नहीं। प्रभु के चरणों मे गिरकर हनुमान जी ने कहा पुनि प्रभु मोहि बिसारेहु दीनबंधु भगवान।भक्त और भगवान दोनो के प्रथम मिलन पर प्रेम के अश्रु बहने लगे। जन्म जन्मों का का पुण्य जब संचित होता है तब भक्त और भगवान मिलते है। नहीं को अस जन्मा जगमाहीं।प्रभुता पाहि तेहि मद नाहीं।। मित्र वही सच्चा है जो हर समय साथ हो।लंका में दो दूत भेजने का प्रसंग बताते हुए कहा कि रावण हनुमान का स्वस्थ संवाद हुआ। माता सीता को ये ग्लानि होती थी कि मेरे लालच की वजह से प्रभु राम और लक्ष्मण परेशान है, तब हनुमान जी पेड़ से मुद्रिका डाल देते है, सांत्वना देते है।करुनानिधान माता सीता का प्रभु राम को संबोधन था। सुन कपि तोहि समान उपकारी, कोई नही सुर,नर, मुनि तन धारी।। प्रति उपकार में मैं क्या करूँ। तब हनुमान जी साखामृग ते बड़ मनुसाई। शाखा ते शाखा पर जाई यह कुछ न मोर प्रभुताई। ता कहु कुछ प्रभु अगम नहीं जा पर तुम अनुकूल। हनुमान जी को भगवान की आज्ञा हुई कि आप पृथ्वी पर ही रहें। आज भी हनुमान जी जगत कल्याण के लिए धरती पर है। हनुमान धारा स्वयं भगवान राम के बाण से निकल जो सीधे हनुमान जी के सीने में गिर रही है। उससे पूर्व आचार्य पनिकलीक्ष पुनीत मिश्रा ने परशुराम-लक्ष्मण संवाद की कथा का श्रवण किया।