उत्तर प्रदेशलखनऊ

संतों का जीवन अद्भुत होता है।

वे कथनी में नहीं करनी मे बोलते हैं। शब्द में नहीं आचरण में अभिव्यक्त होते हैं।


ग्लोबल टाइम 7:00
न्यूज नेटवर्क
वंदना मिश्रा
पाटन बीघापुर उन्नाव
शायद इसीलिए भाषा के स्तर पर अधिकांश संत आपने निजी जीवन के विषय में मौन रहे हैं। यह मौन तब गहन हो जाता है जब उनके समकालीन ग्रंथों में उनका उल्लेख नहीं होता है। खुद ईशा के समकालीन ग्रंथों में ईशा का उल्लेख नहीं है। जीन दो इतिहासकारों टेटिसस और जोसे फस ने सर्वप्रथम ईशा के नाम का उल्लेख किया है उनका समय भी ईशा के करीब सौ वर्ष बाद का है। ऐसे में रमता जोगी बहता पानी की उक्ति का अनुसरण करने वाले संत महात्माओं के जीवन वृत्त में भ्रांति होना सहज स्वाभाविक है। मोहब्बत शाह भी ‘चरैवेति’ संस्कृत के संत थे। उनके जन्म स्थान समय और वंश परिवार का प्रमाणित वृतांत अद्यतन उपलब्ध नहीं है।
विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से इस गुत्थी को सुलझाने का प्रयत्न किया है। काका बैसवारी उन्हें मक्का मदीना का बताया तो कुछ लोग बसरा बगदाद का। तकिया स्थित मदरसा मोहब्बत शाह के दल उलूम के मौलवी इब्राहिम रजा के अनुसार मोहब्बत शाह का जन्म इराक के हेरात नामक नगर के मोहल्ला करण में हुआ था। पर इन सब श्रुतियों के पीछे ठोस प्रमाण नहीं है। निश्चित रूप से इतना ही कहा जा सकता है कि वे सूर्य चंद्रमा की रोशनी और नदी की धारा की तरह “उपजहि अनत- अनत छवि लहही’ ” को चरितार्थ करते हुए कहीं से घूमते घूमते तकिया- पाटन में आकर रम गए हैं। इतना निर्विवाद है कि उनका अंतिम समय तकिया में भी था और यहीं पर उन्होंने ‘पर्दा ‘ फरमाया।
सूफी संत बाबा मोहब्बत शाह की मजार तथा साहस लिंगेश्वर महादेव जी के मंदिर पर सामूहिक रूप से लगने वाला यह मेला भारतीय सा’स्कृतिक एकता का प्रतीक है तथा सभी धर्मों जातियों संप्रदायों का मूल एक है मूल एक है। हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक यह मेला प्रतिवर्ष लोगों में सर्व धर्म संभाव की ज्योति जला जाता है। एक और मंदिर में पूजा पाठ कर आत्मसात पाते हैं वहीं दूसरी ओर मोहब्बत शाह बाबा की मजार पर हजारों की संख्या में लोग श्रद्धा की चादर चढ़ाकर सुकून प्राप्त करते हैं।। इस मेले में उन्नाव जनपद के सामाजिक तथा सांस्कृतिक सद्भाव की एक झांकी प्रतिवर्ष देखने को मिलती है। बाबा मोहब्बत से अपनी भारत यात्रा के दौरान जहां-जहां कुछ समय रुके उन स्थानों को तकिया कहा जाने लगा उन्होंने ऐसे कुल 14 तकिया स्थापित किए थे। इनमें 11 उत्तर प्रदेश में पटना बिहार में 11 मुंबई और एक मध्य प्रदेश में है।
बाबा मोहब्बत शाह के जन्म स्थान की तरह उनके जन्म काल के विषय में भी कुछ लोग उन्हें 400 वर्ष पूर्व का बताते हैं तो कुछ इससे पहले का। सच तो यह है कि तकिया के गद्दारों के पास भी इसका प्रामाणिक लेखा-जोखा नहीं है। इतिहास के नाम पर श्रद्धा भरे आधे अधूरे ग्रंथ हैं। क्वेश्चन सुतिया कुछ धर्म दर्शन और संप्रदाय से निकलते हुए निष्कर्ष तटस्थ भाव से इन्हें आलोक में उनके समय की अनियमित का प्रयास किया जा सकता है। अवध गजट ईयर में भी उल्लेख है कि मोहब्बत शाह का इंतकाल नवाब असाउ दौला के शासनकाल में हुआ था। इतिहास ग्रंथों से पता चलता है कि नवाब अशफाक दौला का शासनकाल सन 1775 ईस्वी से 1797 ईस्वी तक था। मोहब्बत साहब की भेंट इसी कालखंड में हुई होगी। यदि यह भेंट सन 1750 ईसवी के लगभग हुई हो और भेंट के समय मोहब्बत से 75 वर्ष के रहे हो तो उनका जन्म सन 1710 ईसवी के आसपास माना जा सकता है।
जानकारों के अनुसार गद्दी धरो की नियुक्ति मोहब्बत शाह के पर्दा लेने के बाद शुरू हुई होगी। दरगाह के मौलाना बताते हैं कि प्रारंभिक 16 गद्दी धर मोहब्बत शाह के प्रत्यक्ष शिष्य थे। जाहिर है कि उनका कार्यकाल कम रहा होगा अहमद शाह ने मोहब्बत शाह के सामने ही पर्दा ले लिया था। वर्तमान गद्दी धर गुलाम हुसैन साहब को 18 गद्दी धर बताते हैं दरगाह के सूत्र उन्नीसवा’।
जीवनी कारों के अनुसार मोहब्बत शाह का काफिला सबसे पहले अजमेर पहुंचा था इस काफिले में कई सैकड़ा लोग थे। दरअसल उन दिनों काफिले या तो याती दलों के रूप में आते थे या किसी आक्रमणकारी दर के साथ। भारत में चिश्ती संप्रदाय के प्रथम पुरुष मोहिद्दीन चिश्ती के विषय में इतिहासकारों टाइटस लिखते हैं कि वह शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी की सेना के साथ भारत आए थे। कहा जाता है कि अजमेर में उनका काफिला मुंबई पहुंचा जहां माहिम के स्थान पर काफी समय तक रुके। यहीं पर उनकी माता जी का निधन हुआ। केंद्रीय सत्ता का परिदृश्य इन दिनों काफी अच्छा नहीं था दिल्ली के तत्व पर बाहरी भी तेरी निगाहें गढ़ी हुई थी सत्ता 1747 में नादिर शाह के आक्रमण से मुगल सत्ता चरमरा गई थी। ऐसे में संत महात्माओं की यात्राएं भी बड़ी कष्ट साध्य थी। पर अपने अलौकिक तेज संकल्प के बल पर पटना बिहार पहुंचे पटना उन दिनों कादरी संप्रदाय के सूफियों का प्रमुख केंद्र था गद्दी सूत्रों के अनुसार बाबा के यहां अर्जानी सा को अपना गुरु माना और उनकी आज्ञा से देशाटन पर निकले सरगुजा बंजरिया आदि स्थानों पर घूमते हुए अंत में उन्नाव जनपद के गांव पाटन के निकट घोर जंगल में स्थित सहस्त्र लिंगेश्वर मंदिर के पास रम गए। साधना के लिए याद था उन्हें सबसे उत्तम लगा कालांतर में यही पर मंदिर के सामने उन्होंने अपनी कोठी बनाई और सर्वधर्म समभाव का संदेश प्रचारित किया।
मोहब्बत सा एक सिद्ध संत पुरुष थे उन्हें चमत्कार प्रदर्शन में रुचि नहीं थी फिर भी उनके द्वारा समय-समय पर किए गए कार्य आज भी जन श्रुतियों में प्रचलित है। श्रद्धा बस इन चमत्कारों में कुछ ऐसे भी चमत्कार जुड़ गए हैं जो दूसरे संतो के विषय में सुने जाते हैं। श्रद्धा की अति सहायता ही इसका मुख्य कारण है। अपने जीवन काल में ही उन्होंने 14 स्थानों पर तकिया स्थापित किए थे।
मोहब्बत शाह का अधिकांश समय उत्तर प्रदेश में ही व्यतीत हुआ। उनकी सिस्टर मंडली में दूसरे स्थानों के लोग भी थे। उनके प्रत्यक्ष शिष्य और उनके बाद तकिया गद्दी के उत्तराधिकारी शफकत सा के विषय में दरगाह के मौलाना बताते हैं कि वह रोम इटली की सेना में पदाधिकारी थे। अवध गजट ईयर के अनुसार मोहब्बत शाह के इंतकाल के बाद सफक्कत शाह ने उनकी मजार पर उसकी शुरुआत की थी। आगे चलकर पाटन बिहार के तालु केदार महेश बक्स अर्जुन सिंह ने सन 18 सो 60 ईस्वी के लगभग विशाल मेले का शुभारंभ किया था।
बाबा के परम शिष्य न्यामत शाह अपने गुरु जी की भात पहुंचे हुए फकीर थे। जो चुपचाप अलग धोनी के पास बैठे हुए ध्यान मग्न थे। नवाब साहब ने सोचा की 52 या बस आपको सर्दी लग रही होगी अतः उन्हें एक दुशाला भेज कर दिया जाए किंतु कमी यह हुई कि वह दुशाला अपने नौकर द्वारा भिजवाया जो बाबा न्यामतशाह के कंधे पर डर कर चुपचाप चला आया। बाबा जीने अपने कंधे पर रखा दुशाला कंधे से लेकर जलती धूनी में रख दिया जो देखते-देखते भस्म हो गया। पीछे खड़े नवाब साहब ने यह देखकर दुखी हो गए सोचने लगे की फकीर दो साले की कद्र क्या जाने। बाबा घूमकर नवाब साहब की ओर देखा और कहा तुम्हारा यह सोचना व्यर्थ है और कहां तुम्हें और कितने जो साले चाहिए। और जलती हुई धोनी से कई दुशाले निकाल कर नवाब साहब के सामने फेंक दिया। यह देख कर नवाब साहब दंग रह गए और कहा कि-

” या खुदा तुम्हारी माया पार है गुरु से चेला ज्यादा जोरदार है।”बाबा मोहब्बत शाह के बहुत शिष्य थे परंतु प्रमुख रूप से न्यामत शाह का अस्थान है,,यह बाबा के जीवनकाल में ही बाबा के आदेश का पालन करने के लिए समाधिस्थ हो गए थे। बाबा ने अपने हाथ से नियमत साहब को समाज में आसीन किया और कहा कि बेटा नाम मेरा काम तेरा रहेगा। बाबा मोहब्बत शाह एक सिद्ध पुरुष होने के साथ समाज सुधारक भी थे धार्मिक समन्वय स्थापित करने के लिए वे स्वयं सहस्त्र लिंगेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना किया करते थे। यह परंपरा उनके गद्दी धरो द्वारा आज तक निभाई जा रही है।

तकिया पाटन में स्थित साथ लिंगेश्वर महादेव का मंदिर बाबा मोहब्बता के कार्यकारी का माना जाता है यह मूर्ति स्वयं प्रकट हुई बताई जाती है। सूखा पड़ने पर बाबा साहब चलेंगे स्वर महादेव मंदिर कि इस मूर्ति को मंदिर में पानी भरकर डूबने का प्रयास किया किंतु वह लाख प्रयास के बाद नहीं डूबी किवदंती तो यह भी है की लोगों के प्रयास के बाद बरसात अवश्य होती थी। मंदिर के पास बना पक्का तालाब जो कभी कमलो से शोभायमान हुआ करता था आज अपनी वीरानगी की कहानी स्वयं बयां कर रहा है।
तकिया पाटन में स्थित सहस्त्र लिंगेश्वर महादेव के मंदिर तथा बाबा मोहब्बत शाह के मजार पर प्रतिवर्ष पौष माह के प्रथम बृहस्पतिवार को बाबा के शिष्य अमित शाह के सम्मान में यह मेला लगता है और चैत्र माह के प्रथम बृहस्पतिवार को भी यहां बाबा मोहब्बत शाह के सम्मान में एक मेला आयोजित किया जाता है कि यह अपेक्षाकृत छोटा होता है।
पौषमाह के प्रथम बृहस्पतिवार 15 दिसंबर को लगने वाले इस मेले का शुभारंभ परंपरागत रूप से जिलाधिकारी/ मेला अधिकारी द्वारा बाबा मोहब्बत शाह की मजार पर चादर पोशी करके सहस्त्र लिंगेश्वर महादेव मंदिर ने पूजा अर्चना की जाएगी। इस मौके पर उप जिलाधिकारी दयाशंकर पाठक पुलिस कप्तान सहित प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहेंगे।

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