कानपुर रिंग रोड मुआवजा घोटाले में नया मोड़ !

करोड़पति लेखपाल आलोक दुबे ने हाईकोर्ट में ट्रांसफर रोकने की याचिका दायर, प्रशासन से पूरी रिपोर्ट तलब
कानपुर/लखनऊ:
रिंग रोड परियोजना में कथित मुआवजा घोटाले के आरोपों से घिरे कानपुर के लेखपाल आलोक दुबे एक बार फिर सुर्खियों में हैं। प्रशासन द्वारा किए गए हालिया स्थानांतरण आदेश के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी है। आलोक दुबे ने दावा किया है कि अदालत द्वारा पूर्व में दिए गए स्थगन आदेश के बावजूद उनका ट्रांसफर किया गया, जो स्पष्ट रूप से न्यायालय की अवमानना है। पूरे मामले में अब हाईकोर्ट ने प्रशासन से विस्तृत जवाब मांगा है और जल्द ही अगली सुनवाई की तारीख भी तय की जाएगी।
रिंग रोड परियोजना में कथित गड़बड़ी की जांच जारी
कानपुर में रिंग रोड परियोजना के लिए किए गए भूमि अधिग्रहण के दौरान फर्जी दस्तावेज, गलत मूल्यांकन और मुआवजे के गबन को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हुआ है। इसी कड़ी में लेखपाल आलोक दुबे पर गंभीर आरोप लगाए गए कि उन्होंने कई किसानों की जमीनों के फर्जी कागज़ तैयार कराकर करोड़ों रुपये का मुआवजा गलत तरीके से हासिल किया।
जांच में सामने आया कि कम से कम 41 खरीद-बिक्री मामलों में अनियमितताएं पाई गईं, जिनमें आलोक दुबे की भूमिका संदिग्ध बताई गई। प्रशासनिक जांच में यह भी सामने आया कि उनकी कुल संपत्ति 30 करोड़ रुपये से अधिक है, जो उनके पद और आमदनी से कई गुना ज्यादा मानी जा रही है।
इन गंभीर आरोपों के चलते एंटी करप्शन डिपार्टमेंट ने भी मामले में प्राथमिक जांच शुरू कर दी है और अधिकारियों का कहना है कि दुबे की भूमिका बेहद गहरी और संदिग्ध है। जांच टीम को संदेह है कि यह घोटाला अकेले नहीं बल्कि अधिकारियों, बिचौलियों और स्थानीय दलालों के गठजोड़ से अंजाम दिया गया।
ट्रांसफर पर विवाद: हाईकोर्ट में याचिका
इन आरोपों के बीच जिलाधिकारी ने आलोक दुबे को कानूनगो से पदावनत कर लेखपाल बनाया और उन्हें कानपुर से हटाकर बिल्हौर तहसील में भेज दिया। प्रशासन के अनुसार यह कार्रवाई नियमों और जांच की आवश्यकता के अनुसार की गई थी।
लेकिन आलोक दुबे ने हाईकोर्ट की शरण लेते हुए कहा कि:
उनका पहले भी वर्ष 2024 में फतेहपुर स्थानांतरण किया गया था।
उस समय हाईकोर्ट ने स्टे ऑर्डर जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि उन्हें तब तक ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।
इसके बावजूद प्रशासन ने नए आदेश जारी करते हुए उन्हें फिर से स्थानांतरित कर दिया, जो अदालत के आदेश की अनदेखी है।
दुबेजी के वकील ने दलील दी कि जब तक उच्च न्यायालय पुराने स्थगन आदेश पर निर्णय नहीं लेता, तब तक किसी भी प्रकार का नया स्थानांतरण आदेश मान्य नहीं हो सकता।
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कानपुर प्रशासन से पूरी रिपोर्ट तलब की है और यह पूछा है कि पिछले आदेश के रहते नया ट्रांसफर आदेश क्यों जारी किया गया। अब प्रशासन को लिखित स्पष्टीकरण देना होगा।
स्थानीय प्रशासन की प्रतिक्रिया
कानपुर प्रशासन का कहना है कि:
स्थानांतरण नियमित प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
जांच प्रभावित न हो, इसके लिए दुबे को हटाना आवश्यक था।
यह कदम किसी द्वेष या अवमानना के तहत नहीं बल्कि विभागीय आवश्यकताओं के आधार पर उठाया गया।
जिलाधिकारी कार्यालय का यह भी कहना है कि स्टे ऑर्डर एक अलग स्थानांतरण मामले से संबंधित था और वर्तमान आदेश अलग परिस्थितियों में जारी किया गया है।
मुआवजा घोटाले ने मचाई हलचल
रिंग रोड परियोजना कानपुर का बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है और यहां हुए कथित घोटाले ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि आरोप सत्य पाए जाते हैं, तो यह सिर्फ आर्थिक घोटाला नहीं बल्कि भूमि अधिग्रहण प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी बड़ा प्रश्नचिह्न होगा।
स्थानीय मीडिया, किसान संगठन और नागरिक समाज इस मुद्दे को लेकर सक्रिय हैं। उनका कहना है कि:
इस घोटाले ने कई किसानों के अधिकारों के साथ खिलवाड़ किया है।
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए व्यापक सुधार की जरूरत है।
दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, चाहे पद कोई भी हो।
क्या होगा आगे?
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में हाईकोर्ट का फैसला इस पूरे विवाद का टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है।
यदि अदालत आलोक दुबे के पक्ष में जाती है, तो उनका स्थानांतरण रद्द हो सकता है और वे अपनी पुरानी तैनाती पर वापस आएंगे।
वहीं यदि प्रशासन को राहत मिलती है, तो दुबे को बिल्हौर में ही कार्यभार संभालना होगा और जांच तेज गति से आगे बढ़ सकती है।
इस बीच, एंटी करप्शन की जांच जारी है और कई अन्य अधिकारियों से भी पूछताछ की तैयारी की जा रही है।
निष्कर्ष
कानपुर का यह मामला केवल एक ट्रांसफर विवाद नहीं बल्कि मुआवजा घोटाले की परतें खोलता बड़ा मुद्दा बन गया है। जांच, प्रशासनिक कार्रवाई और कोर्ट की सुनवाई—तीनों मोर्चों पर यह मामला तेजी से आगे बढ़ रहा है। अब सबकी निगाहें हाईकोर्ट के अगले आदेश पर टिकी हैं, जो न सिर्फ आलोक दुबे के भविष्य की दिशा तय करेगा बल्कि रिंग रोड परियोजना की विश्वसनीयता और भ्रष्टाचार पर प्रशासन की दृढ़ता को भी उजागर करेगा।





