उत्तर प्रदेशलखनऊ

चंबल के डकैतों ने भी आजादी की लड़ाई में कुर्बानी देकर दिलाई आजादी

डकैत ब्रह्मचारी से कांपती थी अंग्रेजी सेना, गेंदालाल दीक्षित प्रभावित होकर बने थे क्रांतिकारी

ग्लोबल टाइम्स-7, डिजिटल न्यूज़ नेटवर्क, जिला संवाददाता राम प्रकाश शर्मा औरैया।

औरैया। हम गर्व से कह सकते हैं कि औरैया की क्रांतिकारी उर्वरा माटी में ऐसे अनेक लाल जन्मे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी गौरवशाली आहुतियां दी हैं। इसमें ब्रह्मचारी डकैत की गाथा बेहद रोमांचक है।

इनका वास्तविक नाम लक्ष्मण सिंह था। क्रांतिवीर पं. गेंदालाल दीक्षित के संपर्क में आने के बाद यह अपने 500 साथियों के साथ देश के लिए समर्पित हो गये। गोरी हुकूमत पर ऐसे करारे प्रहार किये कि वह तिलमिला उठे। अंग्रेजी सेना उनके नाम से कांपती थी।
औरैया के एसबी कॉलेज (अब तिलक इंटर कॉलेज) के प्रधानाचार्य क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित ने चंबल के एक डकैत गैंग के साथ मिल कर उत्तर प्रदेश के हथकान पुलिस थाने में डकैती डाली। इसमें 21 अंग्रेज पुलिस कर्मी मारे गये थे। इसके बाद गेंदालाल चंबल के ही ब्रह्मचारी डकैत गिरोह के साथ अंग्रेज सरकार की ट्रेजरी लूटने की योजना बनाते एक मुठभेड़ में गिरफ्तार कर लिए गये। षडयंत्र में इन्हें मुख्य आरोपी बना कर ग्वालियर किले में कैद कर दिया गया, लेकिन गेंदालाल दीक्षित किले से कूद कर भाग गये। यह बहुत ही कम लोग जानते है ,

रामप्रकाश जी द्वारा

कि यहां के डाकुओं ने अग्रेंजी हुकूमत के दौरान आजादी के दीवानों की तरह अपनी देशप्रेमी छवि से देशवासियो के दिलों में ऐसी जगह बनाई कि हम उन्हें स्वतंत्रता दिवस के दिन याद किये बिना रह नही पाते है। चंबल फाउंडेशन के संस्थापक शाहआलम बताते हैं कि आज़ादी पूर्व चंबल में बसने वाले डाकूओं को पिंडारी कहा जाता था। डाकुओं ने देश के क्रांतिकारियों को न केवल असलहा व गोला बारूद मुहैया कराया बल्कि उनको छिपने का स्थान भी दिया। चंबल के बीहड़ों में आजादी की जंग 1909 से शुरू हुई थी। चंबल में रहने वालों ने क्रांतिकारियों का भरपूर साथ दिया। राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में चंबल के किनारे 450 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में बागी आजादी से पहले रहा करते थे । उन्हें पिंडारी कहा जाता था । पिंडारी मुगलकालीन जमींदारों के पाले हुए वफादार सिपाही हुआ करते थे, जिनका इस्तेमाल जमींदार विवाद को निबटाने के लिए किया करते थे। मुगलकाल की समाप्ति के बाद अंग्रेजी शासन में चंबल के किनारे रहने वाले इन्हीं पिंडारियों ने जीवन यापन के वहीं डकैती डालना शुर कर दिया और बचने के लिए अपनाया चंबल की वादियों का रास्ता अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आन्दोलन में चंबल के किनारे बसी हथकान रियासत के हथकान थाने में साल 1909 में चर्चित डकैत पंचम सिंह, पामर और मुस्कुंड के सहयोग से क्रान्तिकारी पडिण्त गेंदालाल दीक्षित ने थाने पर हमला कर 21 पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतार दिया और थाना लूट लिया । इन्हीं डकैतों ने क्रान्तिकारियों गेंदालाल दीक्षित, अशफाक उल्ला खान के नेतृत्व में सन 1909 में ही पिन्हार तहसील का खजाना लूटा और उन्हीं हथियारों से नौ अगस्त 1915 को हरदोई से लखनऊ जा रही ट्रेन को काकोरी रेलवे स्टेशन पर रोककर सरकारी खजाना लूटा ।


स्वतंत्रता आदोलंन के दौरान साल 1914-15 मे क्रान्तिकारी गेंदालाल दीक्षित ने चंबल घाटी मे क्रान्तिकारियो के एक संगठन मातृवेदी का गठन किया। इस संगठन में हर उस आदमी की हिस्सेदारी का आहृवान किया गया जो देश हित में काम करने का इच्छुक हो इसी दरम्यान सहयोगियो के तौर चंबल के कई बागियो ने अपनी इच्छा आजादी की लडाई मे सहयोग करने के लिये जताई। ब्रह्मचारी नामक चंबल के खूखांर डाकू के मन में देश को आजाद कराने का जज्बा पैदा हो गया और उसने अपने एक सैकड़ा से अधिक साथियों के साथ मातृवेदी संगठन का सहयोग करना शुरू कर दिया। ब्रह्मचारी डकैत के क्रान्तिकारी आंदोलन से जुडने के बाद चंबल के क्रान्तिकारी आंदोलन की शक्ति काफी बढ गई तथा ब्रिटिश शासन के दमन चक्र के विरूद्व प्रतिशोध लेने की मनोवृत्ति तेज हो चली।

ब्रहमचारी अपने बागी साथियो के साथ चंबल के ग्वालियर मे डाका डालता था और चंबल यमुना मे बीहडो मे शरण लिया करता था । ब्रहमचारी ने लूटे गये धन से मातृवेदी संगठन के लिये खासी तादात मे हथियार खरीदे। इसी दौरान चंबल संभाग के ग्वालियर मे एक किले को लूटने की योजना ब्रहमचारी और उसके साथियो ने बनाई लेकिन योजना को अमली जामा पहनाये जाने से पहले ही अग्रेंजो को इस योजना का पता चल गया ऐसे मे अग्रेजो ने ब्रहमचारी के खेमे मे अपना एक मुखबिर घुसेड दिया और पडाव मे खाना बनाने के दौरान ही इस मुखबिर ने पूरे खाने मे जहरीला पदार्थ डाल दिया।

इस मुखबिर की करतूत का ब्रहमचारी ने पता लगा कर मुखबिर को मारा डाला लेकिन तब तक अग्रेजो ने ब्रहमचारी के पडाव पर हमला कर दिया जिसमे दोनो ओर से काफी गोलियो का इस्तेमाल हुआ। ब्रहमचारी समेत उनके दल के करीब 35 बागी शहीद हो गये।

Global Times 7

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