अध्यापकों के द्वारा ऑनलाइन हाजिरी का संगठनात्मक रूप से बिरोध करना गैर कानूनी व अपराधिक कृत्य है-: सतेन्द्र सेंगर “संस्थापक” मीडिया अधिकार मंच भारत
उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली 1956 का दुरूपयोग कर अपने विभागीय जिम्मेदारी से मुँह चुराने जैसा कृत्य कर रहे है-: सतेन्द्र सेंगर “संस्थापक” मीडिया
जीटी-7, डिजिटल न्यूज़ नेटवर्क टीम औरैया, कानपुर मंडलब्यूरो रिपोर्ट, रामप्रकाश शर्मा। 16 जुलाई 2024 #औरैया। जैसा कि आये दिन देखने और सुनने को मिलता रहता हैकि सरकार के कई विभागों में कार्य करने वाले विभागीय कर्मचारियों ने अपने अपने विभागीय संगठन बना कर बड़े स्तर पर कार्य कर रहे है, इस ओर राष्ट्र हित में सतेन्द्र सेंगर “संस्थापक/राष्ट्रीय अध्यक्ष” मीडिया अधिकार मंच भारत ने कड़ा विरोध जताते हुए प्रदेश और केन्द्र सरकार सहित सर्वोच्च न्यायालय से अपील करते हुए कहा है कि सरकार के कई विभागीय सरकारी कर्मचारियों ने अपने अपने विभागीय संगठन बनाकर सरकार के द्वारा जनहित में लागू की जाने वाली नई नियमावली का विरोध रोध प्रदर्शन कर सरकारों पर संगठनात्मक रूप से दबाव बनाकर अपने विभागीय जिम्मेदारियों से मुँह मोड रहे है, प्रत्येक सरकारी कर्मचारी को अपने बिभागीय व सरकार के आदेशों का पालन करना प्रथम कर्तब्य होना चाहिए, युवा समाज सेवी सतेन्द्र सेंगर ने कहा हैकि प्रदेश सरकारें अपने विभागीय कर्मचारियों के संगठनों को अपना वोट बैंक का आधार बनाकर आम जनता के अधिकारों का हनन करने जैसा कार्य कर रहीं है। .सतेन्द्र सेंगर ने खुले तौर पर मीडिया को बताया हैकि हाल में ही उत्तर प्रदेश के वेसिक शिक्षा निदेशक ने अपने विभागीय अध्यापकों को स्कूलों में समय से पहुंचकर ऑनलाइन हाजरी देने के आदेश दिये थे, जैसे ही अध्यापकों को ऑनलाइन हाजरी के आदेश मिले तो सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षक संघ ने अपने ही विभाग के द्वारा पारित किये गये आदेशों को दरकिनार कर चौतरफा विरोध प्रदर्शन कर अपनी विभागीय जिम्मेदारियों से मुँह मोड़कर अपने मनमाने तौर पर कार्य करने का दबाब बना लिया है, जिससे कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ जी सरकार व बिभागीय अधिकारी बैकफुट पर आ गये, सतेन्द्र सेंगर ने कहा हैकि जहाँ पर एक ओर उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश भर में बेरोजगारी का रोना रोया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर सरकार अपने विभागीय कर्मचारियों को जब नियुक्ति दे देते है, तब वही कर्मचारी अपने ही बिभाग व सरकार के आदेशों का संगठनात्मक रूप से विरोध करके अपनी मनमानी करने के लिये दबाव बनाते है, वहीं यही सरकारी अध्यापक अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिये प्राइवेट स्कूलों में दाखिला दिलाते है, जहाँ पर अध्यापकों का वेतन 5000 से 8000 रुपया प्रतिमाह मिलता है, जबकि सरकार अपने अध्यापकों का मासिक न्यूनतम वेतन 44,900 है, इसके बाद भी अपनी जिम्मेदारियों से कटरा रहे है। . वहीं प्रदेश व केन्द्र की सरकार अपने विभागीय कर्मचारियों के संगठनों को अपना वोट बैंक मानकर उनकी मनमानी पूर्ण विभागीय कार्य करने की छूट दे दी जाती है, ऐसे ही ना जाने कितने सरकारी विभाग है जो संगठनात्मक रूप से सरकार के आदेशों का विरोध कर मनमानी तौर पर कार्य करने के लिये सरकार और विभाग को मजबूर करते आ रहे है। सतेन्द्र सेंगर ने उत्तर प्रदेश व केन्द्र सरकार सहित सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध करते हुए कहा है कि यदि मान भी लिया जाये कि सरकारी कर्मचारियों के विभागीय संगठनों के वोट बैंक की ताकत से प्रदेश और केन्द्र में सरकारें बन रहीं है तो फिर हाल में ही लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश सरकार के 16 राज्यमंत्री अपनी ही विधानसभाओं में चुनाव क्यों हार गये है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश की सुरक्षा ब्यवस्था सुधारने वाला पुलिस विभग और केन्द्र की सुरक्षा एजेंसिया यदि अपने अपने विभागीय सुरक्षा यूनिटी बनाकर अपनी मनमानी पूर्ण कार्य करने पर उतारू हो जाये तो क्या कोई प्रदेश अथवा देश सुरक्षित रह पायेगा।